________________
गाहा:
दुज्जय-अणंग-मायंग-भंग-सारंग-पुंगव-सरिच्छे ।
सासय-सिव-सुह-सहिए सिद्धे सिरसा नमसामि ।।११।। छाया:
दुर्जयाना-माता-भङ्ग-सारङ्ग-पुङ्गव-सदृक्षान्
शाश्वतशिवसुखसहितान् सिद्धान् शिरसा नमस्यामि ॥११॥ अर्थ :-
सिद्ध भगवंतने नमन दुःखेथी जीती शकाय एवा कामदेव रूपी हाथीनो नाशकरवा माटे श्रेष्ठ सिंह समान, शाश्वत शिवसुखथी युक्त एवा सिध्ध भगवंतोने हुं मस्तक वडे नमस्कार करू छु। हिन्दी अनुवाद :- अतिकष्ट से जीत सके वैसे कामदेव रूपी हाथी का नाश करने में सिंह के समान, शाश्वत शिवसुख से युक्त सिद्ध भगवंतो को मैं मस्तक द्वारा नमस्कार करता हूँ। गाहा:
आचार्य भगवंतोने वन्दना दुद्धंस-धंत-विद्धंस-धीर-सिद्धंत-देसए धीरे । पंचविहायार-रए सिरसा वंदामि आयरिए ।।१२।।
छाया:
दुवंस-ध्यात-विध्वंस-धीर-सिद्धान्त-देशकान् धीरान् ।
पंचविधाचाररतान् शिरसा वन्देऽऽचार्यान् ॥१२॥ अर्थ :
दुःखे करीने ध्वंस करी शकाय तेवा अज्ञानरूपी अंधकारने नाशकरवामां समर्थ, सिद्धान्तना उपदेशक, धीर, पंचविध आचारमा रक्त, आचार्यभगवंतोने हुं मस्तक बड़े नमस्कार करूं छु। हिन्दी अनुवाद :- दुःख को नष्ट कर सकें, वैसे अज्ञानरूप अन्धकार को नष्ट करने में समर्थ, सिद्धान्त के उपदेशक, धीर, पंचविध आचार में रत आचार्य भगवंतों को मैं मस्तक से नमस्कार करता हूँ। गाहा :
उपाध्याय भगवन्तने वन्दना विसय-सुह-निप्पिवासे संसारच्छेय-करण-तल्लिच्छे । बंदामि उवज्झाए सुत्त-त्थ-विसारए सययं ॥१३॥
छाया:
विषयसुख-निष्पिपासान् संसारछेदकरणतल्लिप्सान् ।
वन्द उपाध्यायान् सत्रार्थविशारदान् सततम् ॥१३॥ अर्थ :- विषयसुखनी पिपासाथी रहित, संसारनो उच्छेद करवानी इच्छावाळा, सूत्र अने अर्थमा विशारद उपाध्याय भगवंतोने हुं निरंतर वंदन करूं छु।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org