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साहित्य सत्कार : १८७
निष्कलंक प्रेमावतार ( हिन्दी संस्करण), संकलनकर्ता स्व० डॉ० लीलुभाई डी० मेहता, प्रकाशक - ओम शान्ति चेरिटेबल ट्रस्ट, कमडोली गली, हुबली - ५८००२८, कर्नाटक, हिन्दी संस्करण २००२, आकार डिमाई, पृष्ठ- ४२४, मूल्य - ७५/
वास्तव में जीवन क्या है? यह बहुत ही जटिल प्रश्न है। जीवन तो सभी लोग जीते हैं परन्तु इसकी चर्चा गिने-चुने लोग ही कर पाते हैं। प्रस्तुत पुस्तक “निष्कलंक प्रेमावतार" कोई मौलिक ग्रन्थ न होकर “शान्ति ज्योति” नामक हिन्दी पाक्षिक की कुछ खास-खास लेखों का संकलन है। इसमें कुल सत्रह लेख हैं। पुस्तक की सभी के सभी लेख उपयोगी हैं। प्रथम लेख निष्कलंक प्रेमावतार है। यह लेख पुस्तक का प्रस्तावना स्वरूप है। अन्य लेखों में अलौकिक सानिध्य, महानुभावों द्वारा गुरुदेव के प्रति उद्गार, मेरी भारत यात्रा, हर एक धर्म में मांसाहार निषेध, अहिंसा का दिव्य संदेश, क्षत्रिय और गोरक्षा लेख उत्कृष्ट बन पड़े हैं। विश्व प्रेम और शान्ति की खोज में नामक आलेख जीवन को आनन्द स्वरूप बनाने के लिए पथ-प्रदर्शक है । 'वचनामृत संग्रह' जीवन को प्रगति के पथ पर ले चलने में मददगार होगा। 'हर एक धर्म का नवनीत' भी काफी उपयोगी बन पड़ा है। यह लेख सम्प्रदाय भेद से ऊपर उठकर जीवन को सन्मति के मार्ग पर चलने का उपदेश देता है। कुल मिलाकर इस संकलित ग्रन्थ को पढ़कर पाठक अवश्य लाभ उठायेंगे और अपने जीवन को यथार्थ के समीप लाने में सक्षम होंगे।
राघवेन्द्र पाण्डेय ( शोध छात्र)
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श्रीपालचरित, रचयिता पं० दौलतराम कासलीवाल, सम्पादक डॉ० वीरसागर जैन, प्रकाशक- भारतीय ज्ञानपीठ, १८, इन्स्टीट्यूशनल एरिया, लोदी रोड, नई दिल्ली- ११०००३, प्रथम संस्करण २००२, आकार - डिमाई, पृष्ठ- १०१, मूल्य - ४०/
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पंडित दौलतराम कासलीवाल कृत श्रीपालचरित जैन कथा साहित्य की उत्कृष्ट रचना है। वर्तमान में यह एक दुर्लभ ग्रन्थ है क्योंकि इसकी पाण्डुलिपि आसानी से उपलब्ध नहीं हो पाती है। सम्पादक डॉ० वीरसागर जैन ने अपने अथक प्रयास से इसे संग्रहीत कर पुस्तक का रूप दिया है। प्रस्तुत रचना में कवि ने राजा श्रीपाल एवं महासती मैनासुन्दरी की लोक प्रसिद्ध कथा के माध्यम से मूलतः शीलभावना, सत्संगति, कर्मसिद्धान्त और धर्म एवं अध्यात्म की शिक्षा दी है जो लौकिक एवं पारलौकिक कल्याण हेतु वर्तमान में अत्यन्त ही उपादेय है । सम्पादक ने इस ग्रन्थ को रोचक एवं उत्कृष्ट बनाने के लिए प्रारम्भ में संक्षिप्त रूप में कथा का सार प्रस्तुत किया है जिसे आत्मसात कर पूरी पुस्तक का निचोड़ प्राप्त किया जा सकता है। मूल
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