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साहित्य सत्कार
वीरसेन और आचार्य नेमिचन्द्र की कृतियों में दी गयी गणितीय तथ्यों की सारगर्भित चर्चा है। प्रो० लक्ष्मीचन्द्र जैन देश के उन इने-गिने विद्वानों में से हैं जिन्होंने अपना का सम्पूर्ण जीवन गणित जैसे दुरूह विषय और उस पर भी प्राचीन प्राकृत ग्रन्थों में वर्णित गणितीय सिद्धान्तों के अध्ययन, मनन एवं शोध में व्यतीत कर दिया है। अब तक उनकी लेखनी से उक्त विषय पर कई पुस्तकें एवं अनेक आलेख प्रकाश में आ चुके हैं। प्रस्तुत पुस्तक भी उसी गौरवपूर्ण श्रृंखला की एक कड़ी है। गणित जैसे दुरूह विषय पर कार्य करने वाले पहले भी अल्प थे और आज भी उनकी संख्या सीमित ही है, परन्तु अभाव नहीं है और न ही भविष्य में होगा। आशा है डॉ० जैन एवं डॉ० त्रिवेदी के शोधकार्यों से प्रेरणा लेकर भावी विद्वान् उनके इस गौरवपूर्ण शोध को आगे बढ़ाते हुए प्राचीन वैज्ञानिकों के योगदान से विद्वजगत को अवगत कराने में अपना सक्रिय सहयोग देंगे।
डॉ०
ऋषभ भारती वर्ष ६, अंक १-३ (अगस्त- अक्टूबर २००३); प्रधान संपादिका कु० ० प्रभा जैन, प्रका० - श्री ब्राह्मी सुन्दरी प्रस्थाश्रम, २१, कँचनविहार, विजयनगर, जबलपुर (म०प्र०); पृ० ३२; आकार - डिमाई; मूल्य - ३००/- रुपया (तीन वर्ष हेतु)।
ऋषभ भारती के प्रस्तुत अंक में दो आलेख हैं। प्रथम आलेख " रेकी- एक उपचार पद्धति" में लेखक का नाम नहीं दिया गया है। हिन्दी भाषा में लिखित इस संक्षिप्त निबन्ध में २४ रेखाचित्रों के माध्यम से बड़े ही सुन्दर ढंग से उक्त विषय पर प्रकाश डाला गया है। "On The Vikram Era" नामक द्वितीय आलेख में इसके लेखकद्वय प्रो० लक्ष्मीचन्द्र जी जैन एवं डॉ० कु० प्रभा जैन ने अत्यन्त विद्वत्तापूर्ण ढंग से सम्वत् प्रवर्तक विक्रमादित्य पर अब तक हुए सभी शोधकार्यों की समीक्षा करते हुए विक्रम सम्वत् के सम्बन्ध में अपना मन्तव्य स्पष्ट किया है। इसी क्रम में उन्होंने विक्रमादित्य और खारवेल के समसामयिकता की बात करते हुए वड्डुमाणु अभिलेख के आलोक में विक्रमादित्य के बारे में संभावित चर्चा भी की है। प्राचीन भारतीय इतिहास के अध्येताओं के लिये यह आलेख एक आलोक स्वरूप है।
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अध्यात्मसार रचनाकार - श्रीमद् यशोविजय जी, अनुवादक और विशेषार्थ लेखक - डॉ० रमणलाल ची० शाह; प्रकाशक एवं प्राप्तिस्थल - श्री राज सोभाग सत्संग मंडल, सोभगपुरा, सायला - ३६३४३०, जिला- सुरेन्द्रनगर, गुजरात, द्वितीय संशोधित संस्करण, फरवरी २००४; आकार रायल, पक्की जिल्द बाइंडिंग; पृष्ठ ४४+५५१; मूल्य निर्देशित नहीं; संभवत
अमूल्य ।
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आचार्य हरिभद्र और कलिकालसर्वज्ञ आचार्य हेमचन्द्र के पश्चात् जैन परम्परा में जिन महान् साहित्यकारों का नाम लिया जा सकता है उनमें प्रमुख हैं अकबरप्रतिबोधक तपागच्छीय आचार्य हीरा जयसूरि की शिष्य परम्परा ऐं
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