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खरतरगच्छ - क्षेमकीर्तिशाखा का इतिहास : १२१
क्षेमराज द्वारा रचित श्रावकाचारचौपाई (वि० सं० १५४६), उपदेशसप्ततिका (वि० सं० १५४७), फलवर्धिपार्श्वनाथरास, चारित्रमनोरथमाला, इखुकारीराजाचौपाई, मंडपाचलचैत्यपरिपाटी, नमिराजर्षिचौपाई, मेतार्यचौपाई, तेतलीपुत्रचौपाई आदि प्रमुख हैं। क्षेमराज के पट्टधर प्रमोदमाणिक्य द्वारा रचित किसी भी कृति का उल्लेख नहीं मिलता। किन्तु इनके शिष्य जयसोम द्वारा रचित बारहवतभावना संधि (वि०सं० १६४६), बारहव्रतसंग्रहणरास (वि०सं० १६४७), वयरस्वामिचउपइ (वि०सं० १६५९), संभवस्तवन (वि०सं० १६५७), चौबीसजिनगणधरसंख्यास्तवन (वि०सं० १६४९), साधुवंदना, गौडीस्तवन आदि विभिन्न कृतियां प्राप्त होती हैं। जयसोम की शिष्य-परम्परा में कई प्रसिद्ध रचनाकार हुए। इनके शिष्य गुणविनय द्वारा रचित खण्डप्रशस्तिवृत्ति (वि०सं० १९४३); नलदमयन्तीकथावृत्ति ° (वि०सं० १९५७); धन्नारास; कयवनारास; कर्मचन्दवंशावलीरास; अंजनासुन्दरीरास; ऋषिदत्ताचौपाई; गुणसुन्दरीचौपाई; मूलदेवचौपाई; तप इकावनबोलचौपाई; शत्रुञ्जयचैत्ययरिपाटी स्तवन; अंचलमतस्वरूपवर्णन आदि कृतियां प्राप्त हुई हैं। १० अ गुणविनय के शिष्य मतिकीर्ति हुए जिनके द्वारा रचित चित्तललितांगरास; अघटकुमारचौपाई (वि० सं० १६७४); धर्मबुद्धिरास (वि०सं० १६९७) आदि रचनायें उपलब्ध हैं। ११ अघटकुमारचौपाई के अन्त मे रचनाकार ने अपनी गुरु-परम्परा दी है जो इस प्रकार है।
क्षेमराज प्रमोदमाणिक्य
जयसोम
गुणविनय
मर्तिकीर्ति (अघटकुमारचौपाई वि०सं० १६७४ एवं धर्मबुद्धिरास
वि०सं० १६९७ आदि के रचनाकार) मतिकीर्ति के शिष्य सुमतिसिन्धुर हुए जिन्होंने वि०सं० १६९६ में गौड़ीपार्श्वस्तवन की रचना की।१२ मतिकीर्ति के एक अन्य शिष्य कीर्तिविलास द्वारा रचित विभिन्न स्तवनादि प्राप्त होते हैं।१३ मतिकीर्ति के एक अन्य शिष्य सुमतिसागर हुए जिनके प्रशिष्य और कनककुमार के शिष्य कनकविलास ने वि०सं० १७३८ में देवराजवच्छराजचौपाई की रचना की।१४ जयसोम के द्वितीय शिष्य विजयतिलक हुए। इनके प्रशिष्य और तिलकप्रमोद के शिष्य भाग्यविशाल ने गुणावलीचौपाई की प्रतिलिपि की।५ जयसोम एक अन्य शिष्य सुयशकीर्ति ने वि०सं० १६६६ में शंखेश्वर पार्श्वगाथास्तवन की रचना की।१६
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