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खरतरगच्छ - क्षेमकीर्तिशाखा का इतिहास : १२७
सन्दर्भ : १. अगरचंद भंवरलाल नाहटा, संपा०, मणिधारी श्रीजिनचन्द्रसूरि अष्टमशताब्दी
स्मृतिग्रंथ, दिल्ली १९७१ ई०, पृष्ठ ४९ और आगे। २. महोपाध्याय विनयसागर, संपा०, गौतमरासपरिशीलन, प्राकृत भारती, पुष्प
४१, जयपुर १९८७ ई०, पृष्ठ ८६-८७। ३. वही, पृष्ठ ८७। ४. अगरचंद भंवरलाल नाहटा, संपा०, ऐतिहासिकजैनकाव्यसंग्रह, श्री अभय जैन
ग्रन्थमाला, पुष्प ८, कलकत्ता वि०सं० १९९४, पृष्ठ १०३। मोहनलाल दलीचंद देसाई, जैनगूर्जरकविओ, नवीन संस्करण, सम्पा० . जयन्त कोठारी, भाग १, अहमदाबाद १९८६, पृष्ठ १९०-१९१ एवं
ऐतिहासिकजैनकाव्यसंग्रह, पृष्ठ ११२। ६. देसाई, पूर्वोक्त, भाग २, नवीन संस्करण, पृष्ठ २३५-३८, शीतिकंठ मिश्र,
हिन्दी जैन साहित्य का इतिहास (मरु-गुर्जर), भाग २, वाराणसी १९९४
ई०, पृष्ठ १७२ और आगे। ७. जैनगूर्जरकविओ, नवीन संस्करण, भाग १, पृष्ठ १९०-१९१। ८. वही, भाग २, पृष्ठ २३५-३८, एवं Vidhatri Vora-Ed. Catalogue of
Gujarati Mss. L.D. Series No. 71, Ahmedabad 1978 A.D., P. 719. 9. A.P. Shah - Catalogue of Prakrit of Sanaskrit Mss of Muni Shree
Punya Vijayjis Collection, Vol II, L.D. Series No. 6, Ahmedabad
1968 A.D., No. 4998, Pp 130-37. 10. Ibid, No. 5213, Pp 130-37. १०अ. हिन्दी जैन साहित्य का इतिहास (मरु-गुर्जर), भाग २, पृष्ठ १३०-३७। ११. जैनगूर्जरकविओ, भाग ३, पृष्ठ १८३-८५. १२. संवत सोल छयाणवइ, माहा हे आठमि दीह उदार कि
भेरवा हे गोडीयास जी दुःख भेटवा हे भवनासच्चा हे पारकि। संरीसइ संखेसरइ खंभनयरीय हे जगहथंभण पास कि, ग्राम नगर पट्टण रहेवा पूरइ हे निज भगतानी हे आसकि।
जैनगूर्जरकविओ, भाग २; पृष्ठ ३१३। १३. अगरचन्द नाहटा - युगप्रधानजिनचन्द्रसूरि, पृष्ठ १७६। १४-१६. वही, पृष्ठ २००।
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