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महाराणा प्रताप का पत्र सम्राट अकबरप्रतिबोधक जैनाचार्य हीरविजयसूरि के नाम**
डॉ० सोहनलाल पटनी*
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यह ऐतिहासिक दस्तावेज गुजराती साप्ताहिक समाचार पत्र जयजिनेन्द्र के ता० १.४.०३ के अंक में प्रकाशित हुआ है। हिन्दीभाषियों एवं इतिहासकारों के लिये महत्त्वपूर्ण यह दस्तावेज यहां पुन: प्रकाशित किया जा रहा है।
यह पत्र आश्विन शुक्ल पंचमी सं० १६३५ गुरुवार का है एवं राणा प्रताप ने इसे चावंड निवास के समय श्रीमद् विजयहीरसूरीश्वरजी को लिखा था। इस पत्र में निम्न बातों का स्पष्टीकरण किया गया है :
१. महाराणा प्रताप से सूरिजी का पत्र व्यवहार था।
२. महाराणा उदयसिंह जी के समय सरिजी के मेवाड़ आगमन पर यथोचित सम्मान नहीं हुआ था जिसके लिए इस पत्र में क्षमा मांगी गई है।
३. मेवाड़ में तपागच्छ एवं उसके उपासकों एवं आचार्यों को मान्यता दी गई।
४. सम्राट अकबर को हीरविजयजी द्वारा दिये प्रतिबोध की सराहना करते हुए उसका प्रभाव सम्पूर्ण हिन्दुस्तान में स्वीकार किया गया है।
पत्र को अविकल रूप से यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ :- स्वस्ति श्री मसूदं शुभ स्थाने सरब ओपमा धारक भट्टारक महाराज श्री हीर विजे सूरिजी चरणकमलायणे स्वस्त श्री वजे कटक चावंडेरा सुथाने महाराजाधिराज श्री राणा प्रताप सिंहजी ली० पगे लागणो वंचसी। अठारा समाचार भला है। आपरा संदा भला चाइजे। आप बडा है, पूजनीक हो। सदा करपा राखी, जींसु सदा रखावेगा। अप्रंच आपरो पत्र अणा दिनाम्हे आयो नहीं, सो करपा कर लखावेगा। श्री बड़ा हजूररी वगत पदारणो हुवो जीमें अठासुं पाछा पदारता पातसा अकब्रजी ने जेनाबादम्हे गनान रौ प्रतिबोध दीदो, जीरो चमत्कार मोटो बताया। जीवहंसा छरकली (चिड़िया) तथा नामपखेरु (पक्षी) वेती सो माफ कराई जीरो मोटो उपकार कीदो,सो श्री जैनरा ध्रममें आप असाहिज अद्योतकारी (उद्योतकारी) अबार कीसे देखता आपजु फेर वे न्हीं आवी। पूरब हिन्द सथान अन्त्रवेद (अन्तर्वेद) गुजरात सुदा चारु दसा म्हे धरम रो बड़ो अदोतकार देखाणो, जठा पछे आपरो ** यह पत्र आदरणीया बहन डॉ० कु० नीना जैन द्वारा लिखित पुस्तक मुगल सम्राटों की धार्मिक नीति शिवपुरी १९९१ ई०, परिशिष्ट १, पृष्ठ १४७ पर भी प्रकाशित है। *निदेशक, अजित प्राच्य एवं समाज विद्या संस्थान, शान्तिनगर, सिरोही (राज०)
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