________________
९८ :
श्रमण, वर्ष ५५, अंक १-६/जनवरी-जून २००४
है। गुफाएँ बहुत बड़ी हैं व उनमें तीर्थङ्करों की लगभग ६० फीट ऊँची प्रतिमाएँ हैं। उर्वाही द्वार के प्रथम गुफा-समूह में लगभग २५ विशालं तीर्थंकर मूर्तियाँ हैं जिनमें से एक ५७ फीट ऊँची है। आदिनाथ और नेमिनाथ की ३० फीट ऊँची मूर्तियाँ हैं। अन्य छोटी-बड़ी प्रतिमाएँ भी हैं जिनमें रचना व अलंकरण आदि का सौन्दर्य व लालित्य दिखायी नहीं देता। यहाँ से आधा मील ऊपर की ओर दूसरा गुफा-समूह है, जहाँ अनेक मूर्तियाँ उत्कीर्ण हैं। बावड़ी के समीप एक गुफा में पार्श्वनाथ की २० फीट ऊँची पद्मासन मूर्ति तथा अन्य तीर्थङ्करों की कायोत्सर्ग मुद्रायुक्त अनेक विशाल मूर्तियाँ हैं। इसी के समीप यहाँ की सबसे विशाल गुफा है जो यर्थातत: मन्दिर है। यहाँ की मुख्य मूर्ति ६० फीट ऊँची है। इन गुफा-मन्दिरों में अनेक शिलालेख भी मिले हैं जिनसे ज्ञात होता है कि इन गुफाओं का निर्माण १५वीं शती में हुआ था। यद्यपि कला की दृष्टि से नहीं, लेकिन इतिहास की दृष्टि से इन गुफाओं का अत्यधिक महत्त्व है। इसके अतिरिक्त अन्य भी अनेक जैनगफाएँ देश के विभिन्न भागों में पहाड़ियों में पायी जाती हैं जिनका धार्मिक, ऐतिहासिक एवं कला की दृष्टि से अत्यधिक महत्त्व है। इस प्रकार जैन गुफा स्थापत्य का धार्मिक, ऐतिहासिक तथा सांस्कृतिक महत्त्व प्राचीन काल से ही रहा है। सन्दर्भ : १. जनार्दन भट्ट : (संपा०) अशोक के अभिलेख, पृ० १२५। २. पी०के० मजुमदार : (संपा०) भारत के प्राचीन अभिलेख। ३. एच०डी० सांकलिया : आयोलॉजी ऑव गुजरात, १९४१; जेम्स बर्जेस:
एण्टीक्वीटीज ऑव काठियावाड़ एण्ड कच्छ, १८७४-७५, पृ० १३९। ४. दे० राजशेखरकृत प्रबन्धकोश एवं जिनप्रभसूरिविरचित विविधतीर्थकल्प। ५. राधा कुमुद मुकर्जी : चन्द्रगुप्त मौर्य और उसका काल, पृ० ६४-६५। ६. अयो० सर्वे ऑव वेस्टर्न इण्डिया, वाल्यूम ३। ७. करकंडचरिउ ४.४-५। ८. हीरालाल जैन : भारतीय संस्कृति में जैन धर्म का योगदान, पृ० ३१३-१४। ९. वही, पृ० ३१५। १०. वही, पृ० ३१६-१७।
.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org