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७८ : श्रमण, वर्ष ५५, अंक १-६ / जनवरी- जून २००४
सिद्धसेन सूरि । साधारण सिद्धसेन न्यायावतार तथा सन्मतितर्क के रचयिताओं से अलग थे। इस प्रकार साधारण सिद्धसेन दार्शनिक सिद्धसेनसूरि से भिन्न थे। उनकी प्रसिद्धि केवल साहित्यिक रूप में मिलती है । कवि ने अनेक स्तुति, स्तोत्र, स्तवन आदि भी रचे हैं, जिनमें से सकलतीर्थस्तोत्र और विलासवईकहा को छोड़ कर अब कुछ भी उपलब्ध नहीं हैं।
कवि सिद्धसेन वाणिज्यकुल तथा कौटिकगण की वज्र शाखा में बप्पभट्टि सूरि की परम्परा के अन्तर्गत यशोभद्रसूरिगच्छ के विद्वान् थे। कवि काव्य कला-मर्मज्ञ कवियों के वंश में उत्पन्न हुआ था। उसकी प्रसिद्धि साधारण नाम से अधिक थी । यद्यपि काव्यरचना में निपुण कवि की ख्याति उनके साधु-दीक्षा लेने के पूर्व ही फैल चुकी थी, किन्तु विलासवईकहा की रचना उन्होंने मुनि बन जाने के बाद की थी । यह कथाकाव्य भीनमाल कुल के श्रेष्ठी लक्ष्मीधर शाह के अनुरोध से रचा गया था। रचनाकार गुजरात के ही किसी भाग का निवासी था।
इस प्रेमाख्यानक कथा-काव्य की रचना पौष चतुर्दशी सोमवार वि० सं० ११२३ में गुजरात के धन्धुका नामक नगरी में हुई थी। ' संधि-बद्ध यह काव्य-ग्रंथ ३६२० श्लोक रचना प्रमाण है। इसमें ग्यारह संधियाँ हैं। पहली सन्धि में सनत्कुमार एवं विलासवती का समागम, दूसरी में विनयंवर की सहायता, तीसरी में समुद्र प्रवास नौका भंग, चौथी में विद्याधरी - संयोग, पाँचवीं में विवाह-वियोग, छठी में विद्या साधना एवं सिद्धि, सातवीं में दुर्मुखवध, आठवीं में अनंग रति विजय और राज्याभिषेक, नवीं में विनयंवर - संयोग, दसवीं में परिवार - मिलन तथा ग्यारहवीं में सनत्कुमार व विलासवती के निर्वाण-गमन का वर्णन है। इस प्रकार इस कथा काव्य में विलासवती एवं सनत्कुमार की कथा अत्यन्त रोचक शैली में निबद्ध है । रचयिता ने इस कथा को आचार्य हरिभद्रसूरि कृत समराइच्चकहा के आधार पर रची है। क्योंकि यह कथा उससे ज्यों की त्यों ली गई है, इसलिए कथा में कवि की कोई मौलिक उद्भावना नहीं दिखलाई पड़ती है, किंतु कथा का वियोग-वर्णन उसकी मौलिक कल्पना है। काव्य में ऐसे कई सुन्दर चित्र हैं, जो निम्नाधारित सौन्दर्यबोध से युक्त हैं। प्रत्येक संधि में अलग-अलग स्थलों पर कवि ने प्रकृति चित्रण द्वारा मानव के आन्तरिक भावों को अभिव्यक्त किया है और इसी रूप में अनेक कार्य - व्यापारों का सुंदर चित्र अंकित किया है। इसके अतिरिक्त विभिन्न प्रसंगों में कवि ने मन की दशाओं का विशेष चित्रण किया है और कई मार्मिक भावों की रस दशा को अभिव्यक्त करने में वह समर्थ हुआ है।
कथा - काव्य में स्थान-स्थान पर गीति-शैल के भी दर्शन होते हैं। दैवी - संयोग और आकस्मिक घटनाओं की संयोजना से काव्य में आद्यान्त उत्सुकता एवं कुतूहल बना रहता है। इसीलिए उसमें रोचकता एवं मधुरता की कमी नहीं है । कवि ने विभिन्न
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