________________
९२ :
श्रमण, वर्ष ५५, अंक १-६/जनवरी-जून २००४
और उन पर वही चमकीला पालिश किया गया है, जो मौर्यकाल की विशेषता मानी गई है। नागार्जुनी पहाड़ी की तीन गुफाओं के नाम हैं - गोपी गुफा, बहिया गुफा और वेदधिका गुफा। अनन्तवर्मा के एक लेख में इसे 'विन्ध्यभूधर गुहा' कहा गया है, यद्यपि दशरथ के लेख में इसका नाम गोपिका गुहा स्पष्ट अंकित है और आजीवक भदन्तों को दान दिए जाने का उल्लेख है। ऐसा ही लेख शेष दो गुफाओं में भी अंकित है।'
उदयगिरि - खण्डगिरि (उड़ीसा) नामक पर्वत की गुफाओं पर हाथीगुम्फा लेख प्राकृत भाषा में उत्कीर्ण है जिसमें कलिंग सम्राट खारवेल के बाल्यकाल व राज्य के १३ वर्षों का वर्णन अंकित है। यह लेख अरहन्तों व सर्वसिद्धों को नमस्कार के साथ प्रारम्भ होता है और उसकी १२वी पंक्ति में स्पष्ट उल्लेख है कि उन्होंने अपने राज्य के १२वें वर्ष में मगध पर आक्रमण कर वहाँ के राजा बृहस्पति मित्र को पराजित किया और वहाँ से कलिंग-जिन की मूर्ति अपने देश में लौटा लिया, जिसे पहले नन्दराज
अपहरण करके ले गया था। इस उल्लेख से जैनधर्म सम्बन्धी अनेक बातें सिद्ध होती हैं। एक तो यह कि ई०पू० पाँचवीं-चौथी शती में नन्दयुग में जैन मूर्तियाँ निर्माण कराकर उनकी पूजा-प्रतिष्ठा की जाती थी। दूसरा यह कि उस समय कलिंग देश में एक प्रसिद्ध जैन मन्दिर व मूर्ति थी जो उस प्रदेश में लोकपूजित थी। तीसरा यह कि वह नन्दसम्राट जो इस जैन मूर्ति को ले गया था और उसे अपने यहाँ सुरक्षित रखा, अवश्य जैन धर्मावलम्बी रहा होगा और उसने उसके लिए अपने यहाँ भी जैन मन्दिर बनवाया होगा। चौथा, यह कि कलिंग देश की जनता व राजवंश में उस जैन मूर्ति के लिए बराबर दो-तीन शती तक ऐसा श्रद्धावान् बना रहा कि अवसर मिलते ही कलिंग सम्राट ने उसे वापिस लाकर अपने यहाँ प्रतिष्ठित किया। इस प्रकार यह गुफा एवं अभिलेख जैनधर्म के इतिहास के लिए अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है।
हाथीगुम्फा यथार्थत: एक सुविस्तृत विहार रहा है, जो मूर्ति-प्रतिष्ठा के साथ मुनियों का निवास स्थान भी रहा है। यह ५२ फीट लम्बा और २८ फीट चौड़ा है जो दो मंजिलों में बना है। नीचे की मंजिल में पंक्तिरूप से आठ तथा ऊपर की पंक्ति में छह प्रकोष्ठ हैं। २० फीट लम्बा बरामदा ऊपर की मंजिल की विशेषता है, जिसमें द्वारपालों की मूर्तियाँ खुदी हैं। नीचे की मंजिल का द्वारपाल सुसज्जित सैनिक प्रतीत होता है। बरामदों में छोटे-छोटे उच्च आसन भी बने हैं। छत की चट्टान को सम्भालने के लिए अनेक स्तम्भ खड़े हैं। एक तोरण-द्वार पर त्रिरत्न का चिह्न एवं अशोक वृक्ष का चित्रण है। द्वारों पर बहुत सी चित्रकारी भी है जो पौराणिक जैन कथाओं से सम्बन्धित है। चित्रकारी की शैली सुन्दर एवं सुस्पष्ट है एवं चित्रों की योजना प्रमाणानुसार है। उदयगिरि-खण्डगिरि में कुल १९ गुफाएँ हैं और उसी के समीप नीलगिरि नामक पहाड़ी में तीन गुफाएँ हैं। इनमें मंचपुरी और बैकुण्ठपुरी नामक गुफाएँ दर्शनीय हैं। यहाँ के
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org