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जैन गुफाएँ : ऐतिहासिक एवं धार्मिक महत्त्व : ९५
के बीच की हैं। इस गुफा - समूह के सम्बन्ध में जैन साहित्यिक परम्परा यह है कि यहाँ तेरापुर के समीप पर्वत पर महाराज करकंडु ने कुछ गुफाएँ बनवायीं और पार्श्वनाथ की मूर्ति की प्रतिष्ठा की। इसका सुन्दर वर्णन ११वीं शती की रचना कनकामरकृत अपभ्रंश काव्य करकंडचरिउ में मिलता है। इतना निश्चित है कि जब मुनि कनकामर ने उक्त ग्रन्थ रचा, तब तेरापुर की गुफा विशाल और प्राचीन समझी जाती थी । "
दक्षिण के तमिल प्रदेश में भी प्राचीन काल से ही जैनधर्म का प्रभाव रहा है। 'संगम युग' की समस्त मुख्य कृतियाँ तिरुकुरुल आदि जैनधर्म से प्रभावित हैं । जैन " द्राविड़ संघ का संगठन भी प्राचीन है। इस प्रदेश में भी जैन संस्कृति के अवशेष मिलते हैं। जैन मुनियों का एक प्राचीन केन्द्र सित्तन्नवासल नामक स्थान रहा है। यहाँ की जैन गुफा बड़ी महत्त्वपूर्ण है। यहाँ पर एक ब्राह्मी लिपि का लेख मिला है जो अशोक के समय का प्रतीत होता है। इस लेख से स्पष्ट है कि गुफा का निर्माण जैनमुनियों के निमित्त कराया गया था। यह विशाल गुफा १००x५० फीट की है, जिसमें अनेक कोष्ठक और समाधि-शिलाएँ भी बनी हुई हैं। वास्तुकला एवं चित्रकला की दृष्टि से यह गुफा महत्त्वपूर्ण है।
बादामी की जैन गुफा भी उल्लेखनीय है, जिसका निर्माण काल सातवीं शती का मध्य भाग माना जाता है। यह गुफा १६ फीट गहरी तथा ३१४३९ फीट लम्बीचौड़ी है। पीछे की ओर मध्य भाग में देवालय है और तीनों पार्श्वों की दीवालों में मुनियों के निवासार्थ कोष्ठक बने हैं। यहाँ चामरधारियों सहित तीर्थङ्कर महावीर की मूल पद्मासन मूर्ति के अतिरिक्त दीवालों और स्तम्भों पर भी जिनमूर्तियाँ उत्कीर्ण हैं। ऐसा माना जाता है कि राष्ट्रकूट नरेश अमोघवर्ष (८वीं शती) ने राज्य त्यागकर व जैन दीक्षा लेकर इसी गुफा में निवास किया था। गुफा के बरामदों में एक ओर पार्श्वनाथ तथा दूसरी ओर बाहुबली की विशाल प्रतिमाएँ उत्कीर्ण हैं |
इसी प्रकार ऐहोल नामक ग्राम के समीप कुछ गुफाएँ हैं जिनमें भी जैन मूर्तियाँ विद्यमान हैं। मुख्य गुफाओं की रचना बादामी गुफा के ही समान है। गुफा बरामदा, मण्डप और गर्भगृह में विभाजित है । बरामदे में चार खम्भे हैं और उनकी छत पर मकर, पुष्प आदि की आकृतियाँ बनी हुई हैं। बायीं भित्ति में पार्श्वनाथ की मूर्ति है जिसके एक ओर नाग तथा दूसरी ओर नागिन स्थित है। दाहिनी ओर चैत्य-वृक्ष के नीचे जिनमूर्ति बनी है। इस गुफा की सहस्रफण युक्त पार्श्वनाथ की प्रतिमा कला की दृष्टि से बड़ी महत्त्वपूर्ण है। अन्य जैन आकृतियाँ एवं चिह्न भी प्रचुर मात्रा में विद्यमान हैं । गुफाओं में पूर्व की ओर मेघुटी नामक जैन मन्दिर है जिसमें चालुक्य नरेश पुलकेशिन द्वितीय का ६३४ ई० का लेख
है । '
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