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६६ : श्रमण, वर्ष ५५, अंक १-६ / जनवरी - जून २००४
अर्थात् प्रमाण और नय की दृष्टि से अनेकान्त भी अनेकान्त है। अनेकान्त प्रमाण की दृष्टि से और अर्पित नय की दृष्टि से एकान्त है। जो वस्तु अनेकान्त है, वह किसी अपेक्षा से एकान्त भी है। श्रुतज्ञान और नय से निरपेक्ष वस्तु नहीं दिखायी पड़ती। श्रुत ज्ञान की अपेक्षा से अनेकान्त रूप है और नयों की अपेक्षा से एकान्त रूप है। बिना अपेक्षा के वस्तु का रूप नहीं देखा जा सकता ।
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हाथी का पैर खंभे के समान ही है। यह कथन अंश के बारे में पूर्ण सत्य है। अतः 'ही' लगाना आवश्यक है तथा पूर्ण के बारे में आंशिक सत्य है। अतः 'भी' लगाना जरूरी है। यद्यपि प्रत्येक वस्तु अनेक परस्पर विरोधी धर्मयुगलों का पिण्ड है तथापि वस्तु में संभाव्यमान परस्पर विरोधी धर्म ही पाये जाते हैं, असंभाव्यमान नहीं । अन्यथा आत्मा में नित्यत्व- अनित्यत्व के समान चेतनत्व और अचेतनत्व धर्मों की संभावना का प्रसंग आयेगा।
अनेकान्तवाद के सन्दर्भ में यह तथ्य विचारणीय है कि हमें अनेकान्तवाद को स्याद्ववाद कहने की भूल नहीं करनी चाहिए। दोनों समान दिखने के बाद भी कुछ अन्तर लिए हुए हैं। सर्वथा सत्, सर्वथा असत्, सर्वथा नित्य, सर्वथा अनित्य आदि एकान्तों का निरसन करके वस्तु को कथंचित अनित्व आदि पक्ष युक्त होना एकान्त है और वस्तु के उस अनेकान्तमक अर्थ के कथन करने की पद्धति का नाम स्याद्वाद है ।" अर्थात अनेकान्तवाद की भाषायी अभिव्यक्ति का रूप ही स्याद्वाद है या स्याद्वाद वह प्रणाली है जिसके द्वारा अनेकान्तवाद का समर्थन किया जाता है किन्तु फिर भी उन पर सूक्ष्म दृष्टि डाली जाए तो स्याद्वाद और अनेकान्तवाद में अन्तर प्रतीत होता है। जहाँ अनेकान्तवाद वस्तु की अनेकान्तमकता का द्योतक है वहीं स्याद्वाद वस्तु की उस अनेकान्तमकता को द्योतित करते हुए एकान्तिक भाषा दोष का परिमार्जन करता है । इस परिमार्जन के लिये स्याद्वाद और अनेकान्तवाद में सम्बन्ध होना आवश्यक प्रतीत होता है। इसे हम आधार - आधेय का सम्बन्ध भी कह सकते हैं। अनेकान्तवाद स्याद्वाद का आधार है और स्याद्वाद अनेकान्तवाद की भाषायी अभिव्यक्ति की एक शैली है। यदि इस सम्बन्ध को स्वीकार नहीं किया जाए तो अनेकान्तवाद की भाषायी अभिव्यक्ति किसके माध्यम से होगी? स्याद्वाद किस सिद्धान्त को अभिव्यक्त करेगा और वह किस ★ पर आधारित होगा। वस्तुतः इसके अभाव में स्याद्वाद और अनेकान्तवाद दोनों अपूर्ण रह जायेंगे। १° अनेकान्तवाद स्याद्वाद का इस अर्थ में पर्यावाची है कि ऐसा वाद - कथन अनेकान्तवाद कहलाता है, जिसमें वस्तु के अनन्त धर्मात्मक स्वरूप का प्रतिपादन मुख्य गौण भाव से होता है । यद्यपि ये दोनों पर्यायवाची हैं फिर भी 'स्याद्ववाद' शब्द निर्दिष्ट भाषा-शैली का प्रतीक बन गया। अनेकान्त दृष्टि तो ज्ञान रूप है। अतः वचन रूप स्याद्वाद से उसका भेद स्पष्ट है। स्याद्वाद नय का निरूपण करने वाली विशिष्ट भाषा-पद्धति है और स्याद्वाद की अभिव्यक्ति सात प्रकार के वचन विन्यास अथवा नयों से होती है। चूंकि द्रव्य के बारे में हमारी जिज्ञासा सात प्रकार से होती है । अत: प्रश्न
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