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जीवन्धरचम्पू में पर्यावरण की अवधारणा : ५९
भारतीय लोक जीवन में गंगा को माँ के रूप में स्वीकार करना, क्षीरी वृक्षों में देवताओं का वास मानना, तुलसी के पौधे को देवी का रूप मानना और तदनन्तर प्रकृति पूजा के बहाने उनका मान-सम्मान कर उनकी वृद्धि में सहायक बनना आदि कुछ ऐसी बातें हैं जो आज भी हमारे रक्त में प्रवाहित हैं।
पर्यावरण को हम दो भागों में विभक्त कर सकते हैं - एक बाह्य और दूसरा अन्तरङ्ग। अन्तरङ्ग पर्यावरण अर्थात् मानसिक पर्यावरण की शुद्धि से बाह्य पर्यावरण शुद्ध रहता है। अतः मानसिक विकृति से बचना ही पर्यावरण का मूलाधार है।
जैन साहित्य के एक घटक जीवन्धरचम्पू में हम देखते हैं कि जब महाराजा सत्यन्धर विषयासक्त होकर काष्ठांगार को अपना राज्य सौंपना चाहते हैं तब मन्त्रीगण राजा को समझाते हुये कहते हैं कि -
धर्मार्थयुग्मं किल काममूलमिति प्रसिद्धं नृप नीतिशास्त्रे ।
मूले गते कामकथा कथं स्यात् केकायितं वा शिखिनि प्रणष्टे || उर्वश्यामनुरागतः कमलभूरासावकीर्णा क्षणात्
पार्वत्याः प्रणयेन चन्द्रमकुटीऽप्यर्धाङ्गनोऽजायत।
विष्णुः स्त्रीषु विलोलमानसतया निन्दास्पदं सोऽप्यभूद् बुद्धोऽप्येवमिति प्रतीतमखिलं देवस्य पृथ्वीपते । । *
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अर्थात् धर्म और अर्थ - ये दोनों ही पुरुषार्थ के मूल हैं। जब मूल ही नष्ट हो जावेगा तब काम की कथा कहाँ रहेगी ? मयूर के नष्ट हो जाने पर भी क्या केका वाणी रहती है? हे राजन् ! उर्वशी नामक अप्सरा में अनुराग करने से ब्रह्मा क्षण भर में पतित हो गये थे, पार्वती के स्नेह से महादेव ने अपना आधा शरीर स्त्रीरूप कर लिया था, स्त्रियों में चपल-चित्र होने से विष्णु भी निन्दा के पात्र बने और बुद्ध की भी यही दशा रही। हे पृथिवीपते! आप यह सब अच्छी तरह जानते हैं।
इस प्रकार के हितकारी उपदेश के बावजूद काम से जर्जरित चित्त वाले राजा के हृदय में ये उपदेश वैसे ही नहीं ठहर सका जैसे सछिद्र घट में दूध नहीं ठहरता ' और राजा ने अपना राज्यभार काष्ठांगार नामक महामन्त्री को सौंप दिया।
कुछ समय पश्चात् काष्ठांगार कपट से राजा को मारने के लिये अनेक प्रकार का खोटा चिन्तन करता है और देव प्रेरित होने के बहाने अपने अन्य मन्त्रियों से मन्त्रणा करता है। उस प्रसङ्ग में स्वामिभक्त धर्मदत्त नामक मन्त्री के वचन काष्ठांगार के मन में आये मानसिक प्रदूषण को सन्तुलित करने हेतु अत्यन्त उपयोगी हैं। धर्मदत्त मन्त्री राजा की उपयोगिता पर प्रकाश डालता हुआ कहत है कि - 'राजाओं के रहते ही
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