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पाश्र्वाभ्युदय काव्य में अभिव्यंजित मेघदूत काव्य : ४७
जिनसेन ने स्वयं कालिदास के काव्य सौन्दर्य की प्रशंसा की है, किन्तु वास्तव में पाश्वभ्युदय संस्कृत साहित्य की अद्भुत रचना है। प्रो० के०वी० पाठक भी मानते है कि यद्यपि सर्वसम्मति से सर्वोच्च स्थान कवि कालिदास को मिला है तथापि मेघदूत के कर्ता की अपेक्षा जिनसेन अधिक प्रतिभाशाली कवि माने जाने योग्य हैं।
मेघदूत के श्लोकों को पाश्र्वाभ्युदय में अपनी भावनाओं, विचारों और दर्शन को समझाने के लिए आचार्य जिनसेन ने प्रयुक्त किया है अतः यत्र-तत्र कालिदास के विचारों से भिन्नता दृष्टिगोचर होती है जो संक्षेप में निम्न प्रकार है। कुछ उद्धरण स्थल दृष्टव्य हैं :
मेघदूत के आशय के अनुरूप भाव को भौतिक शक्तियों को तुच्छ बताने हेतु प्रस्तुत किया गया है - 'पार्श्व के प्रति दग्धवैर शम्बासुर सोचता है - चूँकि मेघ का दर्शन हो जाने पर सुखी व्यक्ति का भी चित्त अन्य प्रकार की प्रवृत्ति वाला हो जाता है, अत: तिरस्कार करता हुआ मैं गर्जनाओं से भयंकर ध्वनि युक्त विद्युत के उद्योत से असमान शरीर वाले मेघों से इसके चित्त में क्षोभ उत्पन्न करूँगा, अनन्तर प्रकम्पित धैर्य वाले इसे विचित्र उपाय से मारूँगा।" ऐसा सोचकर उसने उपद्रव आरम्भ किया। जिनसेन आगे दर्शाते हैं कि आध्यात्मिक शक्ति के सामने संसार की सारी भौतिक शक्तियाँ तुच्छ हैं, वे उसका कुछ भी नहीं बिगाड़ सकती हैं। जिनसेन शम्बासुर की उक्त मूढ़ता का परिहास करते हुए कहते हैं- 'जिसकी आत्मशक्ति का उल्लंघन करना कठिन है ऐसा यह योगी कहाँ ? और अधम का जीव दैत्य कहाँ ? कहाँ तो गजराज और कहाँ वनमक्खी ? जिसका ध्येय अपरिचित है और पूर्ण रूप से जिसका ध्यान शोभन है ऐसा वह योगी कहाँ ? और धुआँ, अग्नि, जल तथा वायु का समुदाय यह मेघ कहां ? ५
वास्तविक रूप में मेघ बनकर जलवृष्टि के योग्य हो जाता है तो सन्देशादि ले जाने के योग्य नहीं रहता है, किन्तु कालिदास का यक्ष कामुकता एवं उत्कण्ठा में चेतन-अचेतन के विवके से हीन हो जाता है अतः कालिदास का यक्ष वृष्टि हेतु तत्पर जाते हुए मेघ से ही याचना करने लगता है। जिनसेन ने आत्मिक शक्ति के सामने मेघरूप अचेतन पदार्थ को तुच्छ माना है। अतः पार्श्वनाथ उसकी शक्ति को स्वीकार नहीं करते। भौतिक शक्ति का आश्रय लेकर दूसरे को पराभूत करने की चेष्टा करने वाले को जिनसेन शूद्र कहते हैं ।
कालिदास अचेतन प्रकृति को मेघदूत में मनोभावों के समीप ला चेतन बनाने का प्रयास करते हैं, तो जिनसेन पाश्र्वाभ्युदय में आत्मिक शक्ति के सामने जड़ प्रकृति की तुच्छता के यथार्थ को अभिव्यक्त करते हैं। शम्बर के माध्यम से मेघ के रूपों तथा उसके प्रतिफलों जिनसेन ने प्रकट किया है और फिर यह प्रतिपादित
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