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जैन दर्शन में निहित वैज्ञानिक तत्व : २७
(६) जैन आचार्यों ने विभिन्न गणितीय राशियों, संख्यात, असंख्यात, अनन्त, शून्य, पल्य, सागर, लोक, जगश्रेणी, अंगुल, धनांगुल तथा गणितीय प्रक्रियाओं - योग अन्तर, गुणन, भाग, अर्द्धच्छेद, वर्गशलाका आदि को व्यक्त करने हेतु अनेक चिन्हों का प्रयोग किया है। कई राशियों हेतु समान चिन्ह को प्रयोग में लाने के किंचित दोष से युक्त होते हुए भी यह पद्धति मौलिक है। एक ही सन्दर्भ में भिन्न राशियों हेतु समान चिन्ह का प्रयोग न करके भिन्न सन्दर्भो में ऐसा किया है। भिन्न ग्रंथों में एक ही प्रक्रिया हेतु भी भिन्न-भिन्न संकेत मिलते हैं। फलत: इन संकेतों का अर्थ ग्रहण करना वर्तमान में दुरूह अवश्य है किन्तु जाटिल प्रक्रियाओं को इस माध्यम से अत्यन्त संक्षेप में व्यक्त कर दिया गया है, जो उस समय गणितीय विकास का आधार बनी।
(७) पूर्णांक संख्याओं के समान ही भिन्नों के विकास में भी जैनाचार्यों का अतिविशिष्ट स्थान है। सूर्यप्रज्ञप्ति (५०० ई०पू०) में अनेक प्रकार की जटिल भित्रों, उनके गुणन, भाग, व्युत्क्रम, विच्छेद आदि के उदाहरण मिलते हैं। उत्तरकालीन ग्रंथों में भी इनका व्यापक रूप में प्रयोग किया गया है। अनुयोगद्वारसूत्र (१५० ई०) एवं तिलोयपण्णत्ती में करणीगत राशि + का मान a+/2a प्रयोग किया गया है। श्रीधर कृत त्रिंशतिका के उपरांत धवला टीका में वितत भित्रों का सुन्दर निर्वचन अन्य उदाहरणों सहित उपलब्ध है२१। ये प्रकरण पश्चिम में भारत में विकसित होने के बाद प्रचलित हुए।
महावीराचार्य (८५० ई०) ने भिन्नों के योग हेतु लघुत्तम समापवर्त्य का नियम (निरुद्ध नाम से) तथा किसी भी भिन्न को इकाई अंश वाली भिन्नों अर्थात् एकांशक भिन्नों के पदों में व्यक्त करने के अनेक नियम प्रस्तुत किये हैं। ये दोनों महावीराचार्य के मौलिक योगदान हैं।
(८) महावीराचार्य (८५० ई०) ने सर्वप्रथम ऋणात्मक संख्याओं के प्रकृति में वर्गमूल न होने के कथन के माध्यम से प्राकृतिक संख्याओं में ऋणात्मक संख्याओं के वर्गमूल की उपस्थिति को नकारा। उनके इस प्रयास ने काल्पनिक संख्याओं के विकास का पथ प्रशस्त किया२२
(९) क्रमचय एवं संचय का विषय जैन साहित्य में विशदता के साथ भंग एवं विकल्प शीर्षकों के अन्तर्गत प्राचीन काल से उपलब्ध है। यत्र-तत्र इसको प्रस्तार, परिवर्तन, अलाप की संज्ञा दी गई है। ईसा पूर्व के ग्रंथों भगवतीसूत्र, स्थानांगसूत्र, अनुयोगद्वारसूत्र (१५१ ई०पू० - १५० ई०) में n वस्तुओं में से १,२,३..... वस्तुओं को प्राप्त करने के नियम दिये हैं।
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