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श्रमण, वर्ष ५५, अंक १-६/जनवरी-जून २००४
लोकोत्तर गणित के अन्तर्गत राशि (समुच्चय) सिद्धान्त, एकैकी संगति (OneOne Correspondence), अनन्त विषयक गणित, कर्म एवं निकाय सिद्धान्त विषयक गणित आता है। इस पक्ष पर अभी कम काम हुआ है किन्तु इस वर्ग की सामग्री अधिक सामयिक एवं गौरवपूर्ण है।
२०वीं सदी के अन्त तक निरन्तर अप्रकाशित जैन साहित्य प्रकाश में आ रहा है और उसके साथ जैन गणित के क्षेत्र में योगदान देने वाले जैनचार्यों की सूची भी विस्तृत होती जा रही है। यद्यपि विश्व गणितीय इतिहास में आज भी आर्यभट्ट, ब्रह्मगुप्त, श्रीधर, महावीर एवं भास्कर - "द्वितीय' ही स्थान पा सके हैं किन्तु भारतीय गणित इतिहास की नवीन प्रकाशित पुस्तकों में उमास्वाति, वीरसेन एवं नेमिचन्द्र को भी स्थान मिलने लगा है। मैं निम्नांकित सारणी में उन प्रमुख जैनाचार्यों को सूचीबद्ध कर रहा हूँ जिनकी कृतियों में गणितीय सामग्री प्रचुरता से उपलब्ध है। अंग एवं उपांग साहित्य के अन्तर्गत समवायांग, सूत्रकृतांग, स्थानांग (ठाणं), भगवतीसूत्र (व्याख्याप्रज्ञप्ति, अनुयोगद्वारसूत्र, उत्तराध्ययनसूत्र, सूर्यप्रज्ञप्ति, जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति आदि में बहुमूल्य सामग्री उपलब्ध है। क्र० ग्रन्थकार का नाम एवं काल गणितीय दृष्टि से महत्वपूर्ण कृतियाँ १. गुणधर (प्रथम श०ई०पू०) कसाय पाहुड़ (कषायप्राभृत) २. कुन्दकुन्द (प्रथम श०ई०पू०) पंचास्तिकाय आदि
धरसेन (प्रथम श०ई०) षट्खंडागम ४. पुष्पदंत एवं भूतबली (प्रथम श०ई०) षट्खंडागम, महाबन्ध
उमास्वामी (दूसरी श०ई०) तत्वार्थसूत्र उमास्वाति (दूसरी से चौथी श०ई०) तत्वार्थाधिगमसूत्रभाष्य
यतिवृषभ (१७६-६०९ ई०) तिलोयपण्णत्ती ८. पूज्यपाद (देवनन्दि) (५३९ ई०) सवार्थसिद्धि
जिनभद्रगणि भाष्यकार (६०९ ई०) । विशेषावश्यकभाष्य १०. अकलंक (६२०-६८० ई०) तत्वार्थराजवार्तिक ११. विद्यानन्द (७७५-८४० ई०) तत्वार्थश्लोकवार्तिक १२. श्रीधराचार्य (८वीं श०ई०) पाटीगणित, त्रिशंतिका, बीजगणित
(अनुपलब्ध आदि) १३. वीरसेन (८१६ ई०)
धवला, सिद्धभूपद्धति (अनुपलब्ध) १४. जिनसेन (९वीं श०ई०) जयघवला
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