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२० : श्रमण, वर्ष ५५, अंक १-६/जनवरी-जून २००४
श्वेताम्बर जैन आगमों में गणित से सम्बद्ध विषयवस्तु के बारे में महत्वपूर्ण प्रकाश डालने वाली एक गाथा हमें अंग साहित्य के अन्तर्गत उसके तृतीय अंग स्थानांगसूत्र (ठाणं) के १०वें अध्याय में प्राप्त होती है। गाथा निम्न प्रकार है :
दस विधे संखाणे पण्णत्ते तं जहा! परिकम्मं ववहारों रज्जु रासी कलासवन्ने (कलासवण्णे) या जावंतावति वग्गो धनो ततह वग्ग वग्गो विकप्पो त।।१०
इस गाथा में संख्यान (गणित) के १० प्रकारों की चर्चा है। स्थानांगसूत्र के व्याख्याकर अभयदेवसूरि ने सर्वप्रथम इसकी व्याख्या प्रस्तुत की थी। तदोपरांत बी०बी० दत्त, एच०आर० कापडिया, मुकुट बिहारीलाल अग्रवाल, बी० एल० उपाध्याय, एल०सी० जैन आदि विद्वानों ने अपनी-अपनी दृष्टियों से इनकी व्याख्यायें प्रस्तुत की जिनका विस्तृत विवेचन मैंने अपने आलेख 'जैन आगमों' में निहित अध्ययन के विषय १ शीर्षक आलेख में किया है। हम यहाँ अभयदेवसूरि, बी०बी० दत्त एवं
आधुनिक मत को सारणीबद्ध कर रहे हैं। क्र० शब्द अभयदेव सूरि का मत बी० बी० दत्त का मत आधुनिक मत १. परिकम संकलन आदि अंकगणित के अंकगणित के आठ
परिकर्म (८) मूलभूत परिकर्म २. ववहारो श्रेणी व्यवहार या अंकगणित के व्यवहार पाटी गणित के पाटी गणित
व्यवहार ३. रज्जु समतल ज्यामिति रेखा गणित
लोकोत्तर गणित
(लोकोत्तर प्रमाण) ४. रासी अन्नों की ढेरी राशियों का आयतन समुच्चय सिद्धांत
आदि निकालना ५. कलासवन्ने भिन्न
भिन्न ६. जवत्-तावत् प्रकृतिक संख्याओं का सरल समीकरण सरल समीकरण
गुणन या संकलन ७. वग्गो
वर्ग समीकरण वर्ग समीकरण ८. घणो घन
घन समीकरण घन समीकरण ९. वग्ग-वग्गो चतुर्थ घातृ
चतुर्थ घात समीकरण उच्च घात समीकरण १०. वि कप्पो क्रकचिका व्यवहार विकल्प गणित विकल्प एवं भंग
(क्रमचय एवं संचय)
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भिन्न
वर्ग
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