Book Title: Shatkhandagama Pustak 11 Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Balchandra Shastri, A N Upadhye Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay AmravatiPage 36
________________ ४, २, ५, ६.1 वेयणमहाहियारे वेयणखेत्तविहाणे सामित्त ___णोम-णोविसिट्ठा णाणावरणीयवेयणा सिया उक्कस्सा, सिया अणुक्कस्सा, सिया जहण्णा, सिया अजहण्णा, सिया सादिया । सिया अणादिया । कुदो ? णोम-णोविसिद्वत्तविवक्खाए । सिया धुवा तेणेव कारणेण । सिया अद्धवा, सिया ओजा, सिया जुम्मा । एवं दस भंगा एक्कारसभंगा वा | १०) । एसो चोद्दसमसुत्तत्थो । एदेसि भंगाणमंकविण्णासो- | १३| ५ | ९| ५ | ९ | १० | १२ | १२| १०/९/११ / ८८|१०|| एवं सत्तण्णं कम्माणं ॥५॥ जहा णाणावरणीयस्स पदमीमांसा कदा तहा सेससत्तणं कम्माणं पदमीमांसा कायव्वा । एवमंतोखित्तोजाणियोगद्दारपदमीमांसा समत्ता । सामित्तं दुविहं जहण्णपदे उक्कस्सपदे ॥६॥ तत्थ जहण्णं चउन्विहं णाम-द्ववणा-दव्व-भावजहण्णमिदि । णामजहणं टुवणाजहण्णं च सुगमं । वजहण्णं दुविहं आगमदवजहणं णोआगमदव्वजहण्णं चेदि । तत्थ जण्णपाहुडजाणओ अणुवजुत्तो आगमदव्वजहणं । णोआगमदव्वजहण्णं तिविहं, जाणुग नोम-नोविशिष्टज्ञानावरणीयवदना कथेचित् उत्कृष्ट, कथीचत् अनुत्कृष्ट, कथंचित् जघन्य, कथंचित् अजघन्य व कथंचित् सादि भी है। कथंचित् वह अनादि भी है, क्योंकि, नोम-नोविशिष्टत्व सामान्यकी विवक्षा है। इसी कारणसे वह कथंचित् ध्रुव भी है । वह कथंचित् अध्रुव, कथंचित् ओज और कीचत् युग्म भी है। इस प्रकार नोम-नोविशिष्ट पदके दस (१०) भंग अथवा ग्यारह भंग होते हैं। यह चौदहवें सूत्रका अर्थ है। इन भंगोंका अंकविन्यास इस प्रकार है- १३ + ५ + ९ +५+९ +१०+ १२ + १२ + १०+९ + ११ + ८+ ८ + १० = १३१।। इसी प्रकार सात काँकी पदमीमांसा सम्बन्धी प्ररूपणा करना चाहिये ॥५॥ जिस प्रकार ज्ञानावरणीयकी पदमीमांसा की है उसी प्रकार शेष सात कमौकी पदमीमांसा करना चाहिये । इस प्रकार ओजानुयोगद्वारगर्भित पदमीमांसा समाप्त हुई। स्वामित्व दो प्रकार है-जघन्य पदरूप और उत्कृष्ट पदरूप ॥ ६ ॥ उनमें जघन्य पद चार प्रकार है-नामजघन्य, स्थापनाजघन्य, द्रव्यजघन्य और भावजघन्य । इनमें नामजघन्य और स्थापनाजघन्य सुगम है। द्रव्यजघन्य दो प्रकार है-आगमद्रव्यजघन्य और नोआगमद्रव्यजघन्य। इनमें जघन्य प्राभृतका जानकार उपयोग रहित जीव आगमद्रव्यजघन्य कहा जाता है। नोआगमगन्यजघन्य , ताप्रती १० । १३ । १०।९।१०। ८ । इति पाठ । २ प्रतिषु ' एवमंतोखेत्तो - ' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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