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महोपाध्याय श्री विनय विजयजी म. की प्रस्तुत कृति शान्त सुधारस अत्यन्त ही भाववाहो कृति है। इसमें अनित्य आदि भावनाओं का बहुत ही सुन्दर व मर्मस्पर्शी वर्णन है। अत्यन्त लय के साथ यदि गाया जाय तो परम आनन्द की अनुभूति हुए बिना नहीं रहती।
प्रस्तुत ग्रन्थ-विवेचन :
इस 'शान्त सुधारस' ग्रन्थ का मोतीचंद गिरधरलाल कापड़िया ने गुजराती भाषा में बहुत ही सुन्दर विवेचन तैयार किया है, जिसे पढ़कर अनेक पुण्यात्माओं को सम्यग्धर्म के प्रति रुचि पैदा हुई है। इस गुर्जर विवेचन को पढ़कर पाली निवासी श्रीमान् वरदीचंदजी ने मुझे कहा'इस ग्रन्थ का सुन्दर हिन्दी विवेचन तैयार हो तो यह विवेचन हिन्दीभाषी वर्ग के लिए अत्यन्त उपकारक सिद्ध हो सकता है।' उनके इस सुझाव को ध्यान में रखकर परम पूज्य जिनशासन के अजोड़ प्रभावक सुविशाल गच्छाधिपति प्राचार्यदेव श्रीमद् विजय रामचन्द्र सूरीश्वरजी म. सा. की असीम कृपादृष्टि, परम पूज्य अध्यात्मयोगी निःस्पृह शिरोमणि परमोपकारी गुरुदेव पंन्यासप्रवर श्री भद्रंकर विजयजी गणिवर्यश्री की सतत कृपावृष्टि, प. पू. सौजन्यमूर्ति आचार्यदेव श्रीमद् विजय प्रद्योतन सूरीश्वरजी म. सा. के शुभाशीर्वाद से मैंने इस ग्रन्थ के विवेचन का प्रयास प्रारम्भ किया। उपर्युक्त पूज्यों की असीम कृपा तथा प. पू. सहृदय पंन्यासप्रवर श्री वज्रसेन विजयजी म. सा. के मार्गदर्शन और प. पू. परम तपस्वी सेवाभावी मुनि श्री जिनसेन विजयजी म. सा. की सहयोगवृत्ति से इस ग्रन्थ विवेचन का अल्प प्रयास करने में सक्षम बन सका हूँ।
प. पू. विद्वद्वयं प्राचार्यप्रवर श्री यशोविजय सूरिजी म. ने भी इस
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