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(९) मायंबिल की सज्झाय-११ गाथाओं की इस सज्झाय में आयंबिल तप की महिमा बतलाई गई है।
(१०) षगवश्यक (प्रतिक्रमण) स्तवन-इस स्तवन में सामायिक आदि षड्यावश्यकों के स्वरूप का वर्णन किया गया है ।
(११) उपधान स्तवन-इस स्तवन में उपधान तप के स्वरूप का सुन्दर वर्णन है।
(१२) श्री श्रीपाल राजा का रास-विनय विजयजी म. की गुजराती कृतियों में इस रास का महत्त्वपूर्ण स्थान है। संवत् १७३८ में रांदेर नगर में चातुर्मास स्थिरता दरम्यान इस रास की रचना की गई है। यह रास चार खंडों में विभाजित है। इस रास की लगभग ७५० गाथाओं की रचना विनय विजयजी म. ने तथा ५०२ गाथाओं की रचना महोपाध्याय यशोविजयजी म. ने की है।
इस रास के तीसरे खंड की ५ वीं ढाल की रचना में २० गाथाएँ बनाने के बाद विनय विजयजी म. का कालधर्म हुआ था। तीसरे खण्ड की अवशिष्ट ११८ गाथा तथा चौथे खण्ड की रचना उपाध्याय श्रीमद् यशोविजयजी म. ने की है।
इस काव्यकृति में साहित्य के ९ रसों का यथास्थान सुन्दर वर्णन देखने को मिलता है।
महोपाध्यायश्री के उपयुक्त ग्रन्थों का अवलोकन करने से उनकी बुद्धि, प्रतिभा और विराट् व्यक्तित्व का हमें परिचय होता है। महोपाध्यायश्री का देहावसान वि. सं. १७३८ में रांदेर शहर में चातुर्मास दरम्यान हुआ था।
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