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भः सकलकीति
मृत्यु एक पट्टावलि के अनुसार भ, सफलकोत्ति ५६ वर्ष तक जीवित रहे। संवत् १४६९ में महसाना नगर में उनका स्वर्गवास हुआ। पं. परमानन्दजी शास्त्री ने भी 'प्रशस्ति संग्रह' में इनको मृत्यु पंवत् १४९९ में महसाना (गुजरात) में होना लिखा है । डा. ज्योतिप्रसाद जैन एवं डा. प्रेमसागर भी इसी संबत् को सही मानते हैं। लेकिन डा. ज्योतिप्रसाद इनका पूरा जीवन ८१ वर्ष का स्वीकार करते हैं जो अब लेखक को प्राप्त विभिन्न पट्टावलियों के अनुसार यह सही नहीं जान पड़ता । 'सकलकोतिरास' में उनकी विस्तृत जीवन गाथा है। उसमें स्पष्ट रूप से संवत १४४३ को जन्म संवत् माना गया है।
___ संवत् १४७१ से प्रारम्भ एक पट्टावलि में भ. सकलकीति को भ, पद्यनन्दिका चतुर्थ शिष्य माना गया है और उनके जीवन के सम्बन्ध में निम्न प्रकाश डाला गया है...
१. ४ चोथो चेलो प्राचार्य श्री सकलकोत्ति वर्ष २६ छबीसमी ताहा श्री पदर्थ पाटणनाहता तीणी दीक्षा लीधी गांव श्री नीरावा मध्ये । पल्के गुरु फने वर्ष ३४ चोतीस थया ।
२. पछे वर्ष ५६ छपनीसाणे स्वगें पोतासाहो ते वारे पुठी स्वामी सकलकीर्ति ने पाटे धर्मकीत्ति स्वामी नोलनपुर संचे थाप्पा ।
३. एड्वा धर्म फरणी करावता बागडराय ने देस कुभलगढ नव सहस्त्र मध्य संघली देसी प्रदेसी न्याहार कम करता धर्मपदेस देता नवा ग्रन्थ सुध करता वर्ष २२ व्याहार कर्म करिने धर्म संघली प्रदत्या ।
उक्त तथ्यों के प्राधार पर यह निर्णय सही है कि म. सकलकीत्ति का जन्म संवत १४४३ में हुअा था 1
थी विद्याधर जोहरापुरकर ने 'भट्टारक सम्प्रदाय' में सकलकीत्ति का समय संवत् १४५० से संवत् १५१० तक का दिया है। उन्होंने यह समय किस प्राधार पर दिया है इसका कोई उल्लेख नहीं किया । इसलिये सकलकीत्ति का समय संवत् १४४३ से १४९९ तक का ही सही जान पड़ता है।
तत्कालीन सामाजिक अवस्था म. सकलकोत्ति के समय देश की सामाजिक स्थिति अच्छी नहीं थी। समाज में सामाजिक एवं धार्मिक चेतना का प्रभाव था। शिक्षा की बहुत कमी थी।