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राजस्थान के जैन संत : व्यक्तित्व एवं कृतित्व
नाम जसवंतसिंघ ससु तणो । तास आनंदपुर नगर प्रधान ॥
पोरिण छत्तीस लोला करें ।
सो जी जैसे हो इन्द्र विमान || श्री० ॥ १६३॥
सोमो जी तहां जीण भवरण उत्तंग | मंडप देदी जी अधिक अमंग ||
जिरण तरणा बिंब सोमं मला ।
जो नर वंदे मन वचकाइ ॥
दुख कलेस न संचरे ।
तीस घरा नव निधि थिति पाइ ॥ श्री० ॥ १६४॥
इस रास की रचना संवत् १६९७, वैशाख सुदी ५ के दिन समाप्त हुई थी, जैसा कि १६२ में पथ में उल्लेख आया है ।
रास में पार्श्वनाथ के जीवन का पद्य - कथा के रूप में बन है। कमर ने पार्श्वनाथ पर क्यों उपसर्ग किया था, इसका कारण बताने के लिए कवि ने कमठ के पूर्व-भव का भी वर्णन कर दिया है। कथा में कोई चमत्कार नहीं है। कवि को उसे प्रति संक्षिप्त रूप में प्रस्तुत करना था सम्भवत: इसीलिए उसने किसी घटना का विशेष Teja नहीं किया।
पाश्वनाथ के जन्म के समय माता-पिता द्वारा उत्सव किया गया। मनुष्यों न ही नहीं स्वर्ग से प्राये हुये देवताओं ने भी जन्मोत्सव मनाया-
अहो नगर में लोक प्रति करे जी उछाह ।
खर्चे जो द्रव्यं मनि अधिक उमाह ॥
घरि घरि मंगल प्रति घणा,
धरि घरि गावे जी गीत सुचार ॥
सब जन अधिक आनंदिया |
वनि जननी तसु जिस अवतार ||श्री० ॥ १२४॥
पार्श्वनाथ जब बालक ही थे। तभी एक दिन वन-क्रीडा
के लिए अपने साथियों के साथ गये । वन में जाने पर देखा कि एक तपस्वी पंचाग्नि तप तप रहा है और मति श्रुत एवं
बालक पाने, जो तपस्वी मिथ्याज्ञान
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अपनी देह को सुखा रहा है । प्रवधि- ज्ञान के धारी थे, कहा- यह