________________
अवशिष्ट संत
कमलनि कमलनि प्रति भला कवल सबासो जागीये।
प्रति वमले शुभ पालड़ी वसुधिक सत बखासीये ।।१।। २६. म० रत्नचन्द्र (द्वितीय )
भ० प्रभयचन्द्र की परम्परा में होने वाले म शुभचन्द्र के ये शिष्य थे तथा ये अपने पूर्व गुर.ओं के समान हिन्दी प्रेमी सन्त थे। अब तक इनकी चार रचनायें उपलब्ध हो चुकी हैं जिनके नाम निम्न प्रकार हैं
., मादिनाथगीत
• बनिनुमीत ३. चितामणिगीत
४. बावनगजागीत उक्त रचनात्रों के अतिरिक्त इनके कुछ स्फुट गीत एवं पद भी उपलब्ध हुये हैं। 'बावनगजागीत' इनकी एक ऐतिहासिक कृति है जिसमें इनके द्वारा सम्पन्न चूलगिरि की संसथ यात्रा का वर्णन किया गया है। यह यात्रा संवत् १७५७ पौष सुदि २ मंगलवार के दिन सम्पन्न हुई थी।
संवत् सत्तर सतबनो पोस सुदि बीज मोमवार रे। सिद्ध क्षेत्र अति सोभतो तेनि महि मानो नहि पार रे ।।१४।। श्री शुभचंद्र पटुं हवी, परखा वादि मद भंजे रे । रत्नचन्द्र सुरिवर फहें भव्य जीव मन रंजे रे ॥१५॥
चितामणि गौत में प्रकलेश्वर के मन्दिर में विराजमान पार्श्वनाथ की स्तुति की गयी है।
रत्नचन्द्र साहित्य के अच्छे विद्वान् थे। ये १८वीं पातान्दि के द्वितीय-तृतीय चरण के सन्त थे।
२७. विद्याभूषण
विद्याभूषण भ० विश्वसेन के शिष्य थे। ये संवत् १६०० के पूर्व ही भट्टारक बन गये थे। हिन्दी एवं संस्कृत दोनों के ही में प्रच्छ विद्वान थे। हिन्दी भाषा में निबद्ध प्रय तक इनकी निम्न रचमा उपलब्ध हो चुकी है
संस्कृत मथ १. लक्षण चौवीसी पद १. बारहसचौतीसो विधान
१. देखिये ग्रंप सभी भाग-३ पृष्ठ संख्या २१४