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राजस्थान के जैन संत-व्यक्तित्व एवं कृतित्व
लब्धि सु गुम्मटसार सार त्रैलोक्य मनोहर । कर्क शतर्क वितर्क काव्य कमला कर दिएयर ॥
जी मूल संधि विख्यात नर विजयकीत्ति वांछित करण । जा बांद सूर ता लागि तपो जगह सूरि शुभचंद्र सरग ||२६||
इति श्री विजयकीत्ति छंद समाप्ता
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[दि० जैन मन्दिर पाटौदी ]
वीर विलास फाग
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ॐ नमः सिद्धभ्यः ॥ श्री भ० श्री महिचंद्र गुरुभ्यो नमः ॥
अकल अनंत आदीश्वर इश्वर प्रादि अनादि । जयकार जिनवर जग गुरु जोगोश्वर जैगादि ॥१॥
आयी करि संभाल ।
कवि जननो जग जीवनी अपितु शुभमती भगवती भारतो देवी दयाल ||
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सिंहि गुरु सुखकर मुनीवर गणधर गौतम स्वामि ॥३॥२
श्री नमि जिन गुण गाय सुं पाय सु पुण्य प्रकार । समुद्र विजय नृप नंदन पावन विश्वाधार ॥४॥
शिवा देवी कुमर कोडामणी सोहामणी सोहायसु प्रधान । सकल कला गुण सोहरण मोहरण बलि संगान ॥१५॥
सहि जसो भागि समावड़ी खुलूगू हरी कुलचन्द । निरुपमरूप रसालुडो जादूयड़ो जगदानंद ||६
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१. वीरचन्द्र एवं उनकी कृतियों का वर्णन पृष्ठ १०६ पर देखिये । २. मूल पाठ में मात्र एक ही पंक्ति की गई है।