Book Title: Rajasthan ke Jain Sant Vyaktitva evam Krititva
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Gendilal Shah Jaipur

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Page 296
________________ २७० राजस्थान के जन संत-व्यक्तित्व एवं कृतित्व चोवा चहूटा सणगारीयां मारी बाध्यां पटक : पंच शबद वाजि घरि घरि घरि घरि तंबोल ।।४।। धरि धरि गाय वधामणां रसीयो मणा मन मिली। घरि घरि अंग उल्लास सुरासुर मिरलि ॥५०॥ भट्टारक रत्नकीर्ति के कुछ पद [१] राग-नट नारायण नेम तुम कैसे चले गिरिमारि । फंसे विराग घरयो मन मोहन, प्रीत विसारि हमारी ॥१॥ सारंग देखि सिंधारे सारंगु, सारंग नयनि निहारी। उनपे तंत मंत मोहन हे, येसो नेम हमारी |नेम०।२।। करो रे संभार सांवरे सुन्दर, चरण कमल पर वारि। 'रतनकी रसि' प्रभु तुम बिन राजुल विरहानलहु जारी ॥नेम०||३| [२] राग-कन्नडो कारण कोउ पिया को न जाने । भन मोहन मंडप ते बोहरे, पसु पोकार बहाने ।कारण ०॥१॥ मो थे चूक पडी नहिं पलरति, भ्रात्त तात के ताने ।। अपने उर की आली वरजी, सजन रहे सव छाने कारण ॥२।। आये वहोल दियाजे राजे, सारंग मय धूनी ताने । 'रतनकी रति' प्रभु छोरी राजुल, मुगति बघू विरमाने ।।३।। . [३] राग-देशाख सखी री नेम न आनी पीर । वहोत दिवाजे पाये मेरे परि, संग लेर हलधर वीर स०१|| नेम मुख निरखी हरषीयन सू, अव तो होइ मन धीर । तामें पशुय पुकार सुनि करि, गयो गिरिवर के तीर संखी०॥२॥

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