Book Title: Rajasthan ke Jain Sant Vyaktitva evam Krititva
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Gendilal Shah Jaipur

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Page 305
________________ हिंस. तिला रास ... माइ पडिट गम मालदा पाय रे ! मा। : इंदिय सवर संवा विउए बूटता लागि माफेन रे ।। हंसा ॥११॥ बोहाइ घउगइ गमणतर जगि होहि कयच्छ रे । हंसा । जिम भरहेसर नंदाइ गमीय सिंवपुरि पंथि रे ।। हंसा ॥१२॥ एक सरगि सुख भोगवइ एक नरम दुःख खाणि रे । हंसा। एकु महीपति छत्र धर एक मुकति पुरडाणि रे ।। हंसा ॥१३॥ बंधव पुत्र कलत्र जीया माया पियर कुडंब रे । हंसा । रात्रि रूखह पंखि जिम जाइवि दह दिसि सब्ब रे ॥ हंसा ॥१४॥ अनु कलेवर अन्नु जिउ प्रनु प्रकृति विवहार रे । हंसा । अन्नु भन्नेक जाणीय इम जाणी करि सार रे ॥ हंसा ॥१५॥ रस यस श्रोणित संजटिउ रोम चर्म नह हुड्स रे । हंसा। शनि उत्तिम किम रमइ रोगह तरणीय जपड़ रे ।। हूंसा ॥१६॥ आश्रव संवर निर्जरा ए चिंतनु करि द्रढ चित्त रे । हूंसा । जिम देवइ द्वारावतीय पिसिधि हुईय पवित रे ।। हंसा ॥१७|| लोकु वि त्रिहु विधि भावोयह प्रध ऊरघ नइ मध्य रे । हंसा । जिम पावइ उत्तिम गति ए निर्मलु होहि पवित्त, रे ।। हंसा ।।१८।। परजापति इन्द्रिम कुलई देस घरम्म कुल माउ रे। हंसा ।। दुलहउ इक्कई इन्कु परा मनुयत्तणू बइ राउ रे ।हंसा ॥१९॥ कुशुरु कुदेवह रणझरिणउ खलस्म कहा सुवण रे । हंसा। बोघि समाधि बाहिरउ कूडे घमंदरनित्तु रे ।। हंसा ॥२०॥ प्रग्य रे पग च त पारगज मुनिवर सेम अभव्य रे । हंसा । बोधि समाधि बाहि रुए पडिउ नरक असभ्य रे ।। हंसा ॥२२॥ .मसगर पूरण मुनि पबरु नित्य निगोद पहूंतु रे । हंसा । भाव चरण विरण वापंडउ उत्तिम बोघन पत्त रें। हंसा ॥२२॥ तष मासह पोखंत. यह सिब भूषण मुनि राउ रे । हंसा । केवल रणाणु उपाइ करि मुकति नगरि थिउ राउ रे ।। हंसा ॥२३॥ तीर्थंकर चउवीस यह घ्याईनि ग्या मोक्ष रे । हंसा । सो भ्यायि जीव एकु सिंउ जिम पाम बहु सौख्य रे ।। हंसा ॥२४॥

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