Book Title: Rajasthan ke Jain Sant Vyaktitva evam Krititva
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Gendilal Shah Jaipur

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Page 306
________________ राजस्थान के जैन संत : व्यक्तित्व एवं इतिश्य सिद्ध निरंजन परम सिंउ युद्ध बुद्ध गुण पाहू रे । हस । परिसइ कोटी कोडि जस गुण हण लाभइ छेतु रे ।। हंसा ॥२५|| एहा बोधि समाधि लीमा प्रवर सह कफयत्यु रे । हंसा । मनसा वाचा करणयह ध्याईयाहु पसत्थु रे ।। हंसा ॥२६॥ इम जाणी मण कोष करि क्रोबई मह वासु रे । हंसा । दीपाइन मुनि हुयि गयु एनि वा बिती नास रे ॥ हंसा ॥२७॥ चित्त सरलू जीब तू करहिं कोमल करि परिणाम रे । हंसा। कोमल वागि सिम टलट कमाइ केहत ठप रे : हंसा ।।२।। माया म करिसि जीव तह माया धम्मह हाणी रे । हंसी। माया तापस क्षयि गयू ए सिवभूती जगि जाणि रे ॥ हृया ।।२।। सत्य वचन-जीब तू करहिं सत्ति सुरन गमन रे । हंसा । सस्य विहुणउ राउ वसु गयु रे सासलिट्ठामि रे ॥ हंसा ॥३०॥ निर्लोहि तशु गुण परिहिं प्रक्षालहि मन सोसु रे । हंसा । अति लाभह पुरण नरि गयु सरि अति गिद्ध नरेस रे ॥ हसा ॥३॥ पाहि संयम जीवन कू श्री जिन शासन सार रे । हंसा । पालिसखी चक्कवाई जोइन सनत कुमार रे ॥ हंसा ॥३२।। बारह बिधि तप बेलडीया धार तण जलि संचि रे । हंसा। सौख्य अनंता फलि फूलए जातु मन जिय खंचि रे ।। ईसा ।।३३॥ त्याग धरमु जीष पापरहिं आकिचन गुण पाल रे । हंसा । धम्म सरोवर पोल गुगु तिणि सरि करि प्रालि रे ॥ हंसा ॥३४॥ श्रेकि सिरोमणि शीलगुण नाम सुदर्शन जाउ रे । हंसा । ब्रह्म धरिज दृढ पालि करि मुगति नगरि थु राज रे ॥ हंसा ॥३५॥ ए बारइ विहि भावरएइ जो भावइ दृढ चित्त रे । हंसा । श्री मूल संघि गछि देसीजए बोलाइ ब्रह्म अजित रे ।। हंसा ॥३६॥. * इति श्री हंस तिलक रास समाप्तः *

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