Book Title: Rajasthan ke Jain Sant Vyaktitva evam Krititva
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Gendilal Shah Jaipur

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Page 300
________________ राजस्थान के जैन संत : व्यक्तित्व एवं कृतित्व नाहि ने नीद परती नितिवासर । होत विसुरत प्रात ।। चन्दन चन्द्र सजल नलिनीदल । मन्द मरुद न सुहात ॥सखी०॥३॥ गृह आंगनु देख्यो नहीं भावत । दीन भई विललात । विरही वाउरी, फिरत गिरि गिरि । लोकन ते न लजात सखी०॥४॥ पीज धिन पलक कल नहीं जीउ को। न रूचित रसिक गुबात ।। 'कुमुदचन्द्र' प्रमु बरस सरस । नयन चपल ललचात सखी॥५॥

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