Book Title: Rajasthan ke Jain Sant Vyaktitva evam Krititva
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Gendilal Shah Jaipur
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भट्टारक कुमुदत्तनत के कुछ पढ़
[१] राग-नट नारायण आजु मैं देखें पास जिनेंदा ।
सांवरे गात सोहामनि मूरति, शोभित शीस फरेंदा |प्राजु ||१||
कमठ महामद भंजन रंजन । भविक चकोर सुचंदा ।
पाप तमोपह भुवन प्रकाशक । उदित अनुप दिनँदा माजु०॥२॥
भुविज-दिविज पत्ति दिनुज दिनेसर 1 सेवित पद अरविंदा ।
कहत कुमुदचन्द्र होत सवे सुख । देखित वामा नंदा ||आजु०।।३।।
[२] राग-सारंग जो तुम दीन दयाल कहावत। हमसे अनायनि होन दोन फू काहे नाथ निवाजत ॥ जो तुम०||१|| सुर नर किन्नर असुर विद्याधर सब मुनि जन जस गावत । देव महारह कामधेनु ते अधिक जपत सच पावत ।। जो तुम ॥२॥ चंद चकोर जलद जु सारंग, मीन सलिल ज्यु घ्यावत' । कहत कुमुद पति पावन भूहि, तुहि हिरदे मोहिभावत ।। जो तुम०॥३॥
[३] राग धन्यासी मैं तो नरभव वाघि गमायो । न कियो जप तप व्रत विधि सुन्दर ।
काम भलो न कमायो ।। मैं तो० ॥११॥ विकट लोभ ते कपट कूट करी।
निपट विर्ष लपटायो ।।मैं तो।। विटल कुटिल शंठ संगति बैठो।
साधु निकट विघटायो ।मैं तोगा।

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