Book Title: Rajasthan ke Jain Sant Vyaktitva evam Krititva
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Gendilal Shah Jaipur

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Page 290
________________ राजस्थान के जैन संत : व्यक्तित्व एव कृतित्व कोकिल नाद भम्यर झंकारा। भेरि भभो बाजि चित्त हारा ||१६|| खोल्लंत खेलंत चालत चावंत धूणत । जंत हावत पूरंत मोडत ।। तुदंत भंजत झंजंत मुक्कन मारंत रंगेगा । फाडत जात बालंत फेइंत नग्गेश ।।१७।। जारणीय मार गमरा रमरणं यती सो। बोल्यावइ निज वलं सफल सुधी सो॥ सन्नाह बाहु बहु टोप सुषार दंती । रायं गण्यता गयो बहु युद्ध कंती ॥१८॥ तिहाँ मल्या रे आज नई बाजड़ पाना : पर: मुकि मुकह रे मोटा रे बाण आपणु बल प्रमाण कंपइधरा ॥ धजइ धजि रे धनुषधारी मुकइ अगल्यामारी आपणिवलि । फैडि फेडि रे वैरी नाना म सारइ स्वामीनुफाम माहिमलि ।।१९।। अंपाइ जपि रे कठोरनाद करि विषम वाद वेरीय जपा । कादि कादि रे खडग खंड करिह अनेक रंड मारिइ घणा ।। बलगि बलगि रे वीर नि दीर पडि सुरंग तीर अस्यू भरिए । मुक्यो मुक्यो रे जाहि न जाहि मारु अनहीं वोसाहीवयण मुरिंग ॥२०॥ तब मम्मुय देख्यु रे वल करि , आपणो । बस मिथ्यात महामल उट्टीय बझ्यो । बोरु समकित महा नाउ मोठ उत्तम । भारण करिय घणु फरिय घर परागभलुय भन्यो । सहि रे झूटा नइ झूटि मुकइ मोट रे।। मुठि करइ कपट गूदि वीर बरा । उौ रे अबोध बोध भूमइयों घनि । योध करीय विषम क्रोध घरि घरा ॥२१॥ वली भगइ मयण राय उठतु कुमत भाइ । इंसायो सपल ठाय सुरणीय अस्यो। तब देखीय यतीय जंपह हवि प्रापनी सेना रे । कंपड उठो रे तरिक्षन अप्पिड कुमइ हण्यो ॥२२॥

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