Book Title: Rajasthan ke Jain Sant Vyaktitva evam Krititva
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Gendilal Shah Jaipur

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Page 291
________________ श्री विजयीत्ति खंद २६५ तव खंङ्ग खंङ्गि भल्लमल्लि वाण वारिण मोकला। सर जुष्ट यष्टि मुष्ट मुष्टि दुष्ट दुष्टि फोकला ॥ एफ नाथ नाथि हाम हाथि माय माथि कुट्टइ । बली रूह रूडि मुंड मुडि तुडतु'डि तुट्टइ ।।२३।। इद्रिय ग्रामह फीट उठामह मोहनो नामह टलीय गयो । निज कटक सुभग्गो नासरण लग्गो चिंता मग्गो तवह भयो । महा मयण महीयर चड़ीयों गयवर कम्मह परिकर साथ कियो। मछर मद माया व्यसन विकाया पाखंड राया साथि लियो ॥२४॥ विजयकोत्ति यति मति अतिरंगह । भावना झांण कीया पली चंगह ।। शम दम यम प्रगलि वल्लावि । भार कटक मंडी बोलावि १२५॥ तिहां तवलि दंदामा होल ध्रस्त कइ । भेरी भंमा मुगल फुकर॥ बिरद बोलइ जाचक जन साथि । वीर वदिव श्रुटि माथि ।।२६|| झूदा भूट करीय तिहां लग्गा । मयणराय तिहाँ ततक्षण भगा ।। आगलि को मयणाधिप नासइ । ज्ञान खंङ्ग मुनि अतिहं प्रकासइ ॥२७॥ मागो रे मन्या जाइ प्रनंग वेगि रे। काइ पिसि रे गन रे मांहि मुकरे ठाम । रीति रे पाप रि लागी मुनि कहिन पर | मामी दुखि रे काडि रेजांगी जपई नाम ।। मयरण नाम रे फेड़ी आपणी सेना रे। तेडी आपइ ध्यान नी रेडी यतीय वरो । श्री विजय मनावीयु यति अभिनयो । गलपति पूरव प्रकट रोति मुगति वरो॥२८॥ मयरण मनावीयु आरण जाण जण जुगति चलावि । वादीय वृद विवंध नंद निरमल महलावि ।।

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