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________________ २६ राजस्थान के जैन संत-व्यक्तित्व एवं कृतित्व लब्धि सु गुम्मटसार सार त्रैलोक्य मनोहर । कर्क शतर्क वितर्क काव्य कमला कर दिएयर ॥ जी मूल संधि विख्यात नर विजयकीत्ति वांछित करण । जा बांद सूर ता लागि तपो जगह सूरि शुभचंद्र सरग ||२६|| इति श्री विजयकीत्ति छंद समाप्ता "" [दि० जैन मन्दिर पाटौदी ] वीर विलास फाग ५ ॐ नमः सिद्धभ्यः ॥ श्री भ० श्री महिचंद्र गुरुभ्यो नमः ॥ अकल अनंत आदीश्वर इश्वर प्रादि अनादि । जयकार जिनवर जग गुरु जोगोश्वर जैगादि ॥१॥ आयी करि संभाल । कवि जननो जग जीवनी अपितु शुभमती भगवती भारतो देवी दयाल || I सिंहि गुरु सुखकर मुनीवर गणधर गौतम स्वामि ॥३॥२ श्री नमि जिन गुण गाय सुं पाय सु पुण्य प्रकार । समुद्र विजय नृप नंदन पावन विश्वाधार ॥४॥ शिवा देवी कुमर कोडामणी सोहामणी सोहायसु प्रधान । सकल कला गुण सोहरण मोहरण बलि संगान ॥१५॥ सहि जसो भागि समावड़ी खुलूगू हरी कुलचन्द । निरुपमरूप रसालुडो जादूयड़ो जगदानंद ||६ www १. वीरचन्द्र एवं उनकी कृतियों का वर्णन पृष्ठ १०६ पर देखिये । २. मूल पाठ में मात्र एक ही पंक्ति की गई है।
SR No.090391
Book TitleRajasthan ke Jain Sant Vyaktitva evam Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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