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राजस्थान के जैन संत : व्यक्तित्व एवं कृतित्व
१७. सीमंघरस्तवन १८. शाजय प्रादिश्वरस्तवन १६. पादनाथरास २०. इलापुत्र रास
३४. महोपाध्याय समयसुन्दर
'समयसुन्दर' का जन्म सचिोर में हुआ था। इनका जन्म संवत् १६१० के लगभग माना जाता है । डा० माहेश्वरी ने इसे सं० १६२० का माना है । इनकी माता का नाम लीलावे था । युवावस्था में इन्होने दीक्षा ग्रहण करली और फिर काष्य, चरित, पुराण, व्याकरण शE, ज्योतिष अदि विषम प्राहिम का पहिले लो अध्ययन किया और फिर विविध विषयों पर रचनाएं लिखीं । संवत् १६४१ से अापने लिखना प्रारम्भ किया और संवत् १७०० तक लिखते ही रहे। इस दीर्घकास्त में इन्होंने छोटी-बड़ी सैकड़ों ही कृतियां लिखी थीं। समय सुन्दर राजस्थानी साहित्य के प्रभूतपूर्व विद्वान थे, जिनकी कहावतों में भी प्रशंसा परिणत है।
उक्त कुछ सन्तों के अतिरिक्त संघकलश, ऋषिवर्द्धनमूरि, पुण्यनन्दि, कत्याग तिलक, क्षमा कलश, राजशील, बारक धर्मसमुद, पाश्वचन्द्र सूरि, वाचक वितयस मुद्र, पुण्य सागर, साधु कत्ति, विमलकीति, याचक गुणस्न, हेमनदि सूरि, उपाध्याय गुण विनय, सहजकीति, जिनहर्ष, व जिन समुद्रसूरि प्रभृति पचासों विद्वान् हरा हैं जो महान व्यक्तित्व के धनी थे, तथा अपनी विभिन्न कृतियों के माध्यम स जिन्होने साहित्य की महती सेवा की थी। देश में साहित्यिक जागरूकता उत्पन्न करने में एवं विद्वानों को एक निश्चित दिशा पर चलने के लिए भी उन्होने प्रशस्त मार्ग का निवेश किया था।