________________
पई
:
१
बलिभद्र चौपई
[ रचनाकाल सं० १५८५ . )
एक दिवस माली बनी गज, अचरित देखी उभु र । फल्या वृक्ष सवि एक काल, जीवे और तज्यां दुःख बाल ||४||
फरी २ जी वाला गुवन, समोसंररिण जिन श्रीठा पनि । श्राव्या जागी नेमकुमार, मनस्करी जंपि जयकार ||४८|| लेई भेट भेद्य भूपाल कर जोड़ी इम मणि रसाल 1 विगिरि जगगुरु प्रात्रीया, सभा सहित मिव द्वाबियां ॥ ४६ ॥ कृष्ण राय उस वारणी सुणी, हरष वंदन हड त्रिकुखंड धणी । आलिजीष पंचाग पसाउ, दिशि सबमुख चाई नमो ॥५०॥
राई अपदेश शेरी ल कोया कोनि होडि हरषीया । करिता एक मन मनहि हसि ॥५१॥
भव्य जीव धाइ समसि
1
·
जाणे ऐरावण अवतरयु ।
पट हस्ती पासरि परिग घंटा रखना घर धाणकार, विचि २ धर घूम घम सार ॥५२॥
मस्तकि सोहि कुकुम पुज, भरिदान के मधुकर गुंज ॥ वांसि ढाल नेजा फरिहरि, सिणगारी राइ आमिल घरि ॥५३॥
ढाल - सही की
चड् भूप मेगलनी पूठि देर दान मागल जन मूठ नयर लोक का उर साथि धर्म तरि घुरि दोधु हाथ ||१४||
समहर राज करी कृष्ण सांवरिया |
छपन कोड परिवरीया ।
छत्र ऋण शिर उपरि घरीया ।
राही रूखमण सम सरीया ||
साहेलडी जिसवर बंदर जाइ, नेमि तर गुण गाइ । साहेलडी रे जग गुरु बंदरण जाई ॥ ५५ ॥ ॥
M53
१. ब्रह्म यशोधर कूल इस कृति एवं कवि की अभ्य रचनाओं का परिचय पृष्ठ ८३ पर देखिये ।