Book Title: Rajasthan ke Jain Sant Vyaktitva evam Krititva
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Gendilal Shah Jaipur

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Page 287
________________ महावीर अन्य २६१ जे माषि प्रथी निलिखि. मारग मुगति तणि मनरंगि । हे नवि जाइ सत्तम पुडवो, अल्प पापि भथी माहची ।।२१॥ माधवी पुरवी नहीं जरवा यस्स पाप न रांचउ । ते मुगति मार्ग किम मारणइ एह महिमा खंघउ । सह वरि अजो करि क ज्जासत्तनगनु दीक्षीउ। बंदरण नमसण तेह नेलि काइतह्यो लक्षीउ ॥२२॥ स्त्री रूप पडिमा काइ न मानु जो उपामि विवपुरं । नाम अबला कर्म सवला जीयवा किय प्रादरं ॥ कबल केवली करि आहार अरमंतु सहते किहीं धरे । वेदशीय सत्ता आहार करता रोग सघला संचरि ।।२३।। नरकादि पीड़ा मरत कीडा देखिनि किम भुजइ । पाण झाए विनाश बेदन शुधा की सहु सीझाइ । सर सरस वली पाहार करता वेदना बहु बुशह । एक्क घरि अनेक आहार घरि घरि मम्मलां किम सुभइ ।।२४।। एक परि वर आहार जाणी जायतां जीह लोलता । * प्राहार कारणि गेह गेहि हीडता प्रणाणता ॥ समोसरणि जा करइ भोजन तोहि मोटी मम्मता। भूख लागि अपरनीपरि माहार ले जिन गम्मता ।।२५।। अठार दूषण रहित बीरि केवलणाण सुपामीउ । जन नयन मन ला सुघट हरण हर करण वर भरमामीउ । इ'द मंद्र खगेंद्र शुभचंद नाथ परपति ईश्वरो। सयल संघ कल्या (ण) कारक धर्म वैश यतीश्वरी ।।२६३५ सिद्धारथ सुत सिद्धि वृद्धि वांछित वर दायक । प्रियकारिणी वर पुत्र सप्तहस्तोन्नत कायकं ।। द्वासप्तति वर वर्ष आयु सिंहाक सुमंडित । चामीकर वर वर्ण कारण गोत्तम यती पंडित ।।

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