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________________ २०४ राजस्थान के जैन संत : व्यक्तित्व एवं कृतित्व नाम जसवंतसिंघ ससु तणो । तास आनंदपुर नगर प्रधान ॥ पोरिण छत्तीस लोला करें । सो जी जैसे हो इन्द्र विमान || श्री० ॥ १६३॥ सोमो जी तहां जीण भवरण उत्तंग | मंडप देदी जी अधिक अमंग || जिरण तरणा बिंब सोमं मला । जो नर वंदे मन वचकाइ ॥ दुख कलेस न संचरे । तीस घरा नव निधि थिति पाइ ॥ श्री० ॥ १६४॥ इस रास की रचना संवत् १६९७, वैशाख सुदी ५ के दिन समाप्त हुई थी, जैसा कि १६२ में पथ में उल्लेख आया है । रास में पार्श्वनाथ के जीवन का पद्य - कथा के रूप में बन है। कमर ने पार्श्वनाथ पर क्यों उपसर्ग किया था, इसका कारण बताने के लिए कवि ने कमठ के पूर्व-भव का भी वर्णन कर दिया है। कथा में कोई चमत्कार नहीं है। कवि को उसे प्रति संक्षिप्त रूप में प्रस्तुत करना था सम्भवत: इसीलिए उसने किसी घटना का विशेष Teja नहीं किया। पाश्वनाथ के जन्म के समय माता-पिता द्वारा उत्सव किया गया। मनुष्यों न ही नहीं स्वर्ग से प्राये हुये देवताओं ने भी जन्मोत्सव मनाया- अहो नगर में लोक प्रति करे जी उछाह । खर्चे जो द्रव्यं मनि अधिक उमाह ॥ घरि घरि मंगल प्रति घणा, धरि घरि गावे जी गीत सुचार ॥ सब जन अधिक आनंदिया | वनि जननी तसु जिस अवतार ||श्री० ॥ १२४॥ पार्श्वनाथ जब बालक ही थे। तभी एक दिन वन-क्रीडा के लिए अपने साथियों के साथ गये । वन में जाने पर देखा कि एक तपस्वी पंचाग्नि तप तप रहा है और मति श्रुत एवं बालक पाने, जो तपस्वी मिथ्याज्ञान 1 अपनी देह को सुखा रहा है । प्रवधि- ज्ञान के धारी थे, कहा- यह
SR No.090391
Book TitleRajasthan ke Jain Sant Vyaktitva evam Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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