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- वशिष्ट संत
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रत्नाई की शिष्या श्राविका पारवती गंगवाल ने संवत् १७२२ मितो जेठ बुदी ५ को समाप्त की थी।
श्रीमुल जी संघ बहु सरस्वती गछि । मी जी मुनिवर बहु चारित स्वछ ||
वहां श्री नेमचन्द गछपति भयो ।
तास के पाट जिम सौमे जो भारत ॥
श्री जसको रति मुनिपति भयो ।
जागो जी तर्क प्रति शास्त्र पुराणा ॥ श्र० १५९ ।।
लास को शिष्य मुनि अधिक ( प्रवीन ) । पंच महाव्रत स्यो नित लीन ||
तेरह विधि चारित धर
1
ध्यंजन कमल विकासन बन्द ||
शान गो इम जिसी अवि
मुनिवर प्रगट सुमि श्री
'ले
चन्द || श्री || १६० ॥
सासु तर सिषि पंडित कपुर जी चन्द | कीयो रास चिति धरिवि आनंद ||
जिena कह मुझ ग्ररूप जी मति । जसि विधि देख्या जो शास्त्र-पुराण |1
बुधजन देखि को मति हसं ।
संसो जो विधि में कीयो जी बखारा || श्री ।। १६१ ।।
सोलासँ सत्ताराचे मामि वैसाख ।
पंचमी तिथि सुम उजल पाखि ॥
नाम नक्षत्र आद्रा भो । बार बृहस्पति अधिक प्रधान ॥
रास कीयो दामा सुत तणो ।
स्वामी जी पारसनाथ के थान || श्री० ॥ १६२॥
मही देत को राजा जी जाति राठोर ।
सकल जी छत्री या सिरिमोट ||