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________________ J - वशिष्ट संत २०३ रत्नाई की शिष्या श्राविका पारवती गंगवाल ने संवत् १७२२ मितो जेठ बुदी ५ को समाप्त की थी। श्रीमुल जी संघ बहु सरस्वती गछि । मी जी मुनिवर बहु चारित स्वछ || वहां श्री नेमचन्द गछपति भयो । तास के पाट जिम सौमे जो भारत ॥ श्री जसको रति मुनिपति भयो । जागो जी तर्क प्रति शास्त्र पुराणा ॥ श्र० १५९ ।। लास को शिष्य मुनि अधिक ( प्रवीन ) । पंच महाव्रत स्यो नित लीन || तेरह विधि चारित धर 1 ध्यंजन कमल विकासन बन्द || शान गो इम जिसी अवि मुनिवर प्रगट सुमि श्री 'ले चन्द || श्री || १६० ॥ सासु तर सिषि पंडित कपुर जी चन्द | कीयो रास चिति धरिवि आनंद || जिena कह मुझ ग्ररूप जी मति । जसि विधि देख्या जो शास्त्र-पुराण |1 बुधजन देखि को मति हसं । संसो जो विधि में कीयो जी बखारा || श्री ।। १६१ ।। सोलासँ सत्ताराचे मामि वैसाख । पंचमी तिथि सुम उजल पाखि ॥ नाम नक्षत्र आद्रा भो । बार बृहस्पति अधिक प्रधान ॥ रास कीयो दामा सुत तणो । स्वामी जी पारसनाथ के थान || श्री० ॥ १६२॥ मही देत को राजा जी जाति राठोर । सकल जी छत्री या सिरिमोट ||
SR No.090391
Book TitleRajasthan ke Jain Sant Vyaktitva evam Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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