SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 228
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ राजस्थान के जैन संत : व्यक्तित्व एवं कृतित्व शब्दों का प्रयोग हुना है। यद्यपि छप्पय का मुख्य रस शान्त रस है लेकिन बावे से अधिक छंद धीर रस प्रधान हैं । शब्दो को अधिक प्रभावशील बनाने के लिये चस्यो, छल्यो, पामया. लाज्या, आन्यो, पान्यो, पाया, चल्यो,नम्यां, उपसम्यां, बोल्या आदि क्रियाओं का प्रयोग हुआ है। "तुम" "हम" के स्थान पर तुह्म, अह्म का प्रयोग करना कधि को प्रिय है । हिंगल बोली क कुछ पंच निम्न प्रकार ।। रण निसाण वजाय सकल संन्या तव मेली। चड्यो दिवाजे करि कटक करि दश दिश भेली ॥ हस्ति तुरंग मसूर भार करि शेषज शंको। खगादिक हथियार देखि रवि शशि पण कंप्यो । पृथ्वी नांदोलित थई छत्र चमर रवि छादयो । पृथु राजा ने चरे कहो, व्याघ्र राम तवे प्रावो 1॥१५॥ रू'ध्या में प्रसवार हणीगय वरनि बंटा। रथ की धाप कूचर हणी बली हयनी घटा ।। लव कुश युद्ध देख दशों दिशि नाठा जाये । पृथुराजा बहु बढ़े लोहि पण जुमति न पावे ॥ वन जघ नृप देखतों बल साये भागो या । फुल सील हीन केतो जिते पृथु रा पगे पखयो तदा ॥२ ॥ २०, ब्रह्म कपूरचन्द ब्रह्म कपुरचन्द मुनि गृणचन्द्र के शिष्य थे। ये १७ वीं शताब्दि के अन्तिम चरण के विद्वान थे। अब तक इनके पाश्र्वनाथरास एवं कुछ हिंदी पद उपलब्ध हुये हैं । इन्होंन रास के अन्त में जो परिचय दिया है, उसमें अपनी गुरु-परम्परा के अतिरिक्त आनन्दपुर नगर का उल्लेख किया है, जिसके राजा जसवन्तसिंह श्रे तया जो राठौड जाति के शिरोमणि थे । नगर में ३६ जातियां सुखपूर्वक निवास करती थी। उसी नगर में ऊंचे-ऊचे जैन मन्दिर थे । उनमें एक पार्श्वनाथ का मन्दिर घा सम्भवतः उसी मन्दिर में बैठकर कवि ने अपने इस पास की रचना की थी। पार्श्वनाथराग की हस्तलिखित प्रति मालपुरा, जिला टोंक ( राजस्थान ) . के चौधरियों के वि. जैन मन्दिर के शास्त्र-भण्डार में उपलब्ध हुई है। यह रचना एक गुटके में लिखी हुई है, जो उसके पत्र १४ से ३२ तक पूर्ण होती है। रचना राजस्थानी भाषा में निबद्ध है, जिसमें १६६ पद्य है। "रासको प्रतिलिपि बाई
SR No.090391
Book TitleRajasthan ke Jain Sant Vyaktitva evam Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy