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________________ अवशिष्ट संत २०१ बिना अपराध ही राम द्वारा सीता को छोड़ देने की बात सुनकर सब कुश बड़े क्रोधित हुए और उन्होंने राम से युद्ध करने की घोषणा कर दी। सीता ने उन्हें अहूत समझाया कि राम लक्ष्मण बड़े भारी योद्धा है, उनके साथ हनुमान, सुग्रीव एवं विभीषण जैसे वीर हैं, उन्होंने रावण जैसे महापराक्रमी योद्धा को मार दिया है इसलिये उनमें युद्ध करने की प्रावश्यकता नहीं है लेकिन उन्होंने माता की एक बात न सुनी और युद्ध की तैयारी कर दी। लाखों सेना लेकर वे प्रयोध्या की ओर चले । साकेत नगरी के पास जाने पर पहिले उन्होंने राम के दरबार में अपने एक दूत को भेजा । लक्ष्मण और दूत में खूब वादविवाद हुमा । कवि ने इसका अच्छा वर्णन किया है । इसका एक वर्णन देखिये । दूस बात सामलि कोपे कंप्यो ते लक्ष्मण, एह बल पाल्पो कोण लेखवे नहि हमने परण । राषण मय मायो तेह थिये कुणा अधिको, वनजंघते कोरा कहे दूत ते छे को ।। दूत कहे रे सांभलो लव कुश नो मातुरलो, जगमा जेहना काम छे जाने माह केभ सासुला ।।६।। दोनों सेनाओं में घनघोर युद्ध हुआ लेकिन लक्ष्मण की सेना उन पर विजय प्राप्त न कर सकी । अन्त में लक्ष्मण ने चक आयुध चलाया लेकिन बज भी उनकी प्रदक्षिणा देकर वापिस लक्ष्ममा के पास ही आ गया। इतने में ही वहां नारद ऋषि मा गये और उन्होंने आपसी गलत फहमी को दूर कर दिया। फिर तो लव कृश का अयोध्या में शानदार स्वागत हुना और नीता के चरित्र की अपूर्व प्रशमा होने लगी। विभीषण प्रादि सीता को लेने गये। सौता उन्हें देखकर पहिले तो बहुत क्रोधित हुई लेकिन क्षमा मांगने के पश्चात उन्होंने उनके साथ अयोध्या लौटने की स्वीकृति दे दी 1 अयोध्या माने पर सीता को राम के प्रादेशानुसार फिर अग्नि परीक्षा देनी पड़ी जिसमें वह पूर्ण सफल हुई। प्राखिर राम ने सीसा से क्षमा मांगी और उससे घर चलने के लिये कहा लेकिन सीता ने साध्वी बनने का अपना निश्चय प्रकट किया और सत्यभूषण केवली के समीप आर्यिका अन गई तथा तपस्या करके स्वर्ग में चली गई। राम ने भी निर्वाण प्राप्त किया तथा अन्त में लय और कुश मे भी मोक्ष लाभ किया। भाषा मट्टीचन्द्र की इस रचना को हम राजस्थानी डिंगल भाषा की एक कृति कह सकते है । जिसम की प्रमुख रकमा कृष्ण सरिमयी बेलि के समान है इसमें भी
SR No.090391
Book TitleRajasthan ke Jain Sant Vyaktitva evam Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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