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________________ २०० राजस्थान के जैन संत : व्यक्तित्व एवं कृतित्व सीता कहे सन सात तात तो जनका हमारी । मामंडल मुल भात दियर लक्ष्मण भट सारी। तेह तम्गों बड भ्रात नाथ ते मुझनो जानो । जगमा जे विक्षात तेही माननी मानो । एहव वचन साभली कहे, बहीन भाव जु मुझ परे । बहु महोत्सव आनंद करी सीता ने प्राने घरे ।।१०।। कुछ दिनों के बाद सीता के दो पुत्र उत्पन्न हुए जिनका नाम लय एवं कुश रखा गया । वे सूर्य एवं चन्द्रमा के समान थे। उन्होंने विद्याध्य मन एवं शास्त्र संचालन दोनों की शिक्षा प्राप्त की । एया दिन ने बैठे हुए थे कि नारद ऋषि का वहां आगमन हुया । लव कृश वारा राम लक्ष्मण का वृत्तान्त जानने की इच्छा प्रकट करने पर नारद ने निम्न शब्दों में वर्णन किया। कौरा गांम कुण ठाम पूज्यने कहो मुझ आगल । तेब हापि कहें छे पात देश नामे में कोशल । नगर प्रधौया घनीयंहा इस्चार मनोहर । राज्य करे दशरथ चार सुत नेहना सुन्दर । राज्य बाप्पु जब भरत ने बनदास जथ पोरा मने । सती सीतल लक्ष्मण समो सोल परत दंडक बने ।।२।। तव दशवदनों हरी रामनी राणि सीता। युद्ध करीस जथया राम लक्ष्मण दो भ्राता ।। हणुमंत सुग्रीव घणा सहकारी कीषा । के वियाघर तना धनी ते साथै लोधा ।। युद्ध करी रावरण हणी सीता लई घर प्रावया । महीचन्द्र कहे तह पुन्य थी जगमाहि जस पामया ॥२६॥ सीता परधर रही तेह थी थयो अपवादह । रामे मूकी बने कीधो ते महा प्रमादह ॥ रोदन करे बिलाप एकलो जंगल जहः । वनजंघ नृप एह पुन्य थि आयो ते हवे ।। भगनि करि घर लान्यो तेहषि तुम्ह दो सूत प्रया। भाग्ये एह पद पामया वनजंघ पद प्रामया ॥२७॥
SR No.090391
Book TitleRajasthan ke Jain Sant Vyaktitva evam Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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