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________________ अवशिष्ट संत १६६ 'लवांकुश छप्पय' कवि की सबसे बड़ी रचना है। इसमें छप्पय छन्द के ७० पद्य हैं। जिनमें राम के पुत्र लव एवं कुश को जीवन गाथा का वर्णन है । भाषा राजस्थानी है जिस पर गुजराती एवं मराठी का प्रभाव है। रचना साहित्यिक है तथा उसमें घटनाओं का अच्छा वर्णन मिलता है। इसे हम लन्डकाव्य का रूप दे सकते हैं । कथा राम के लंका विजय एवं अयोध्या आगमन के बाद से प्रारम्भ होती है। प्रथम गद्य में कवि ने पूर्व कथा का सारांश निम्न प्रकार दिया है। के अहनि कटक मेलि रघुपति रण चल्यो । रावण रसा भूमीय पड्यो, सायर जल छल्यो । जय निलान बजाय जानकी निज घर बरिंण दशरथ सुत कोरति भुवनत्रय मांहि बखानी । राम लक्ष्मण एम जीतिने, नयरी अयोध्या आवया । मचन्द्र कहे एक पुन्य थिएडा, बहु परे चामया ॥ १ ॥ एक दिन राम सीता बैठे हुए विनोद पूर्ण बातें कर रहे थे। इतने में सीता ने अपने स्वप्न का फल राम से पूछा। इसके उत्तर में राम ने उसके दो पुत्र होंगे, ऐसी भविष्यवाणी की। कुछ दिनों बाद सीता का दाहिना नेत्र फड़कने लगा । इससे उन्हें बहुत चिन्ता हुई क्योंकि यही नेत्र पहिले जब उन्हें राज्यभिषेक के स्थान पर बनवास मिला था तब भी फड़का था । एक दिन प्रजा के प्रतिनिधि ने आकर राम के सामने सीता के सम्बन्ध में नगर में जो चर्चा थी उसके विषय में निवेदन किया । इसको सुन कर लक्ष्मण को बड़ा क्रोध प्राया और उसने तलवार निकाल ली लेकिन राम ने बड़े ही धयं के साथ सारी बातों को सुनकर निम्न निर्णय किया । सदा रहो आता त में छाना । केनो नहि छे वालोक अपवाद जनाता । साव हुवु लोक नहीं कोई निश्चय जाने । या तद्वा क तेज खल जन सह मानें । एमविचार करी तदा निज प्रपवाद निवारवा सेनापति र जोड़िने लड़ जावो वन घालवा ||७|| सीता घनघोर वन में अकेली छोड़ दी गई । वह रोई चिल्लाई लेकिन किसी ने कुछ न सुना । इतने में पुंडरीक युवराज 'वज्रसंघ' वहां भाया । सीता ने अपना परिचय पूछने पर निम्न शब्दों में नम्र निवेदन किया ।
SR No.090391
Book TitleRajasthan ke Jain Sant Vyaktitva evam Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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