________________
*
ļ
ब्रह्म बून्रराज
५. दान छन् :
यह एक लघु पद है, जिसमें कृपणता की निन्दा एवं दान की प्रा की गई है। इसमें केवल २ पद्य है ।
उक्त सभी पांचों कृतियाँ दि० जैन मन्दिर, पाटोदी, जयपुर के शास्त्र भण्डार के एक गुटके में संग्रहीत हैं...:
!
.:
६. तत्वसार हा :
:
-
'तत्वसार हुहा' की एक प्रति कुछ समय पूर्व जयपुर के टोलियों के मन्दिर के शास्त्र भंडार में उपलब्ध हुई थी । रचना में जैन सिद्धान्त के अनुसार सात तत्वों का वर्णन किया गया है। इसलिए यह एक सैद्धान्तिक रचना है । तत्वों के अतिरिक्त साधारण जनता की कसम दिलाने से बिलों कवि ने अपनी इस रचना में लिया है । १६ साब्दी में ऐसी रचनाओं के अस्तित्व से प्रकट होता है कि उस समय हिन्दी भाषा का अच्छा प्रचलन था । तथा काव्य, कथा चरित, फागु, बेलि आदि काव्यात्मक विषयों के अतिरिक्त सैद्धान्तिक विषयों पर भी रचनाएँ प्रारम्भ हो गई थी। ::
i..
'तवसोर दूहां' में ९१ दोहे एवं श्रीपई हैं। भाषा पर गुजराती का प्रभाव स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है, क्योंकि मट्टारक शुभचन्द्र का गुजरात से पर्याप्त सम्पर्क था । यत् रचना 'दुलहा' नामक श्रावक के अनुरोध से लिखी गयी श्री ने उसके नाम का कितने ही पद्यों में उल्लेख किया है
1
१०३:
रोगरहित संगति सुखी रे, संपदा पूरा ठाणः । धर्मं बुद्धि मन शुद्धड़ी दुल्हा' अनुकमिजाण ।। ६ ।। तत्वों का न करता कवि कहता है कि जिनेन्द्र हो एवं परमात्मा है और उनकी वाणी ही सिद्धार्थ है । जीवादि सात तत्वों पर श्रद्धान करना ही सच्चा सम्यग्दर्शन है |
wi
7.
देव एक जिन देवरे, प्रागम जिन सिद्धान्त ।
12
तरत्र जीतादिक सुबहण, होइ सम्मत प्रभ्रांत ।। १७ ।।
i
मोक्ष तत्व का वर्णन करते हुए कवि ने कहा है
..::
"
कर्म कलंक विकरनो रे, निःशेष होथि नाश ।
मोक्ष तत्व श्री जिनकी, जावा भानु धन्यास | २६ ।।
1
दाल
ii
1. मामा का वर्णन करते हुए कवि ने कहा है कि किसी की बारमा उन्न
aur नीम नहीं हैं, कर्मों के कारण हो उसे उच्च एवं नीच की संज्ञा दी जाती है । :