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भवशिष्ट संत
तब ब्राह्मण कहे सुन्दरी सुशो तपो एणी बात । जिम आनंद बहु उपजे जग माहे छ विख्यात ॥२॥
रास की रचना घोघा नगर के चन्द्रप्रभ चैत्यालय में प्रारम्भ की गयी थी और उसी नगर के आदिनाथ चैत्यालय में पूर्ण हुई थी 1 कवि ने अपना परिचय निम्न प्रकार दिया है
श्रीमूलसंघ महिमा निलो हो, सरस्वती गच्छ सणगार। बलात्कार गण निमंलो हो, श्री पद्भनन्दि भवत्तार रे जी० ।।२३।। तेह पाटि युक गुणनिलो हो, श्री देवेन्द्रकीत्ति दातार । श्री विद्यानन्दि विद्यानिलो हो, तस पट्टोहर सार रे जीना२४॥ श्री मल्लिभूषण महिमानिनो हो. तेह कुल कमल विकास । भास्कर ममपट तेह तणो हो, श्री लक्ष्मीचंद्र रिछरु वासरे जी० ॥२५॥ तस गापति जगि जागियो हो, गौतम सम अवतार | श्री प्रभयचन्द्र वधारणीधे हो, मान तणे मंडार रे जीवा ।।२६। तास शिष्य भरिण रुबड़ी हो, रास कियो मे सार 1 सुकुमाल नो भाबइ जट्ठो हो, सुरगता पुण्य अपार रे १० ॥२४।। क्यालि पूजानि नवि कोय हो, नवि कीयु कविताभिमान । कर्मक्षय कारगड कीयु हो, पांमवा यलि रूइशान रे जी० ॥२८।। स्वर पदाक्षर व्यंजन हीनो.हो, मइ कीयु होयि परमादि । साधु तम्हो सोधि लेना हो, क्षमितवि कर जो आदि रे जी ॥२९।। श्री घोषा नगर सोहागरण हो, श्रीसंघय रो दातार । त्याला छोइ भामरण हो, महोत्लव दिन दिन तार रे जी० ॥३०॥
कान्त्रि की अन्य कृतियों के नाम निम्न प्रकार हैं
१. पोहरमासा गीत, २. वशियडा गोत ३. मीणारे गीत ४. अरहंत गीत ५. जिनवर तीनती ६. प्रादिजिन विनती ७. पद एवं गीत