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राजस्थान के जैन संत : व्यक्तित्व एवं कृतित्व
सीता कहे सन सात तात तो जनका हमारी । मामंडल मुल भात दियर लक्ष्मण भट सारी। तेह तम्गों बड भ्रात नाथ ते मुझनो जानो । जगमा जे विक्षात तेही माननी मानो । एहव वचन साभली कहे, बहीन भाव जु मुझ परे । बहु महोत्सव आनंद करी सीता ने प्राने घरे ।।१०।।
कुछ दिनों के बाद सीता के दो पुत्र उत्पन्न हुए जिनका नाम लय एवं कुश रखा गया । वे सूर्य एवं चन्द्रमा के समान थे। उन्होंने विद्याध्य मन एवं शास्त्र संचालन दोनों की शिक्षा प्राप्त की । एया दिन ने बैठे हुए थे कि नारद ऋषि का वहां आगमन हुया । लव कृश वारा राम लक्ष्मण का वृत्तान्त जानने की इच्छा प्रकट करने पर नारद ने निम्न शब्दों में वर्णन किया।
कौरा गांम कुण ठाम पूज्यने कहो मुझ आगल । तेब हापि कहें छे पात देश नामे में कोशल । नगर प्रधौया घनीयंहा इस्चार मनोहर । राज्य करे दशरथ चार सुत नेहना सुन्दर । राज्य बाप्पु जब भरत ने बनदास जथ पोरा मने । सती सीतल लक्ष्मण समो सोल परत दंडक बने ।।२।। तव दशवदनों हरी रामनी राणि सीता। युद्ध करीस जथया राम लक्ष्मण दो भ्राता ।। हणुमंत सुग्रीव घणा सहकारी कीषा । के वियाघर तना धनी ते साथै लोधा ।। युद्ध करी रावरण हणी सीता लई घर प्रावया । महीचन्द्र कहे तह पुन्य थी जगमाहि जस पामया ॥२६॥ सीता परधर रही तेह थी थयो अपवादह । रामे मूकी बने कीधो ते महा प्रमादह ॥ रोदन करे बिलाप एकलो जंगल जहः । वनजंघ नृप एह पुन्य थि आयो ते हवे ।। भगनि करि घर लान्यो तेहषि तुम्ह दो सूत प्रया। भाग्ये एह पद पामया वनजंघ पद प्रामया ॥२७॥