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अवशिष्ट संत
४. नेमिगोत
५.
१४. शिवनकीर्ति
शीतलनाथ गोत
६.
गीत |
७. झुरावली गोत
विषय
त्रिभुवनकीत मट्टारक उदयसेन के शिष्य थे। उदयसेन रामसेनान्वय तथा सोमकीति कमलकीति तथा यशःकोति की परम्परा में से थे। इनकी अब तक जो ररास एवं जम्बूस्वाभीरास के दो रचनायें मिली हैं । जीवंधररास को कवि ने. कल्पवल्ली नगर में संवत् १६०६ में समाप्त किया था। इस सम्बन्ध में ग्रन्थ की अन्तिम प्रशारित देखिये
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नंदीयच गछ मझार, राम सेन्दान्वयि हवा |
श्री सोमकोरति विजयसेन, कमलकीरति यशकीरति हवउ ॥ १५०॥
तेह पाटि प्रसिद्ध चारित्र मार धुरंधुरो |
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बाथीम भंजन वीर श्री उदयसेन सूरीश्वशे ॥५१॥ प्रणमीय हो गुरु पाय, त्रिभुवनकीरति इस बीनवद । यो त गुणग्राम, नेरो कांई वांछा नहीं ॥१५॥ कल्पवल्ली मझार, संवत् सोल छहोत्तरि । राम र मनोहारि रिद्धि यो संघह धरि ॥५१॥
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दुहा जीवंधर मुनि तप करी, पुहुतु सिव पद ठाम । त्रिभुवनकीरति इस वीनवइ, देयो तह म गुणग्राम ।।१४।।
॥ व ।।
उक्त रास की प्रति जयपुर के तेरहपंथी बड़ा मन्दिर के शास्त्र भंडार के एक गुटके में संग्रहीत है। रास गुटके के पत्र १२९ मे १५१ तक संग्रहीत है । प्रत्येक पत्र में ६९ पंक्तियां तथा प्रति पंक्ति में ३२ अक्षर है। प्रति संवत १६४३ पौष वदि ११ के दिन आसपुर के शान्तिनाथालय में लिखी गयी थी। प्रति शुद्ध एवं स्पष्ट है ।
प्रस्तुत रास में जीवंधर का चरित वर्णित है। जो पूर्णतः रोमाञ्चक घटनाओं