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राजस्थान के जैन संत : व्यक्तित्व एवं कृतित्व
से युक्त है। जीवन्धर अन्त में मुनि बनकर घोर तपस्या करते हैं और निवारण प्राप्त करते हैं।
भाषा--
रचना की भाषा राजस्थानी है जिस पर गुजराती का प्रभाव है। रास में दूहा, चौपई, वस्तुबन्ध, छंद ढाल एवं रागों का प्रयोग किया गया है।
जम्बूस्वामीरास त्रिभुवनधीति को दूसरी रचना है। कवि ने इसे संवत् १६२५ में जनाछनगर के शान्तिनाथ चैत्यालय में पूर्ण किया था जैसा कि निम्न अन्तिम पश्च में दिया हुआ है
संवत्, सोल पंचवीसि जवाछ नयर मझार । भुवन शांति जिनवर तरिण, रच्यु सस मनोहार ॥१६॥
प्रस्तुत रास भी उसी गुटक के १६२ से १९० तक पत्रों में लिपि बद्ध है।
विषय
रास में जम्बूस्वामी का जीवन चरित आणत है ये महावीर स्वामी के पश्चात् होने वाले अन्तिम केवली हैं । इनका पूरा जीवन प्राकर्षक है । ये श्रेष्ठि पुत्र थे अपार वैभव के स्वामी एवं चार सुन्दर स्त्रियों के पति थे । माता ने जितना अधिक संसार में इन्हें फंसाना चाहा उतना ही ये संसार से विरक्त होते गये और अन्त में एक दिन सबको छोड कर मुनि हो गये तथा घोर तपस्या करके निर्वाण लाम लिया ।
भाषा---
रास की माषा राजस्थानी है जिस पर गुजराती का प्रभाव है । मर्णन शेली अच्छी एवं प्रभावक है । राजग्रही का वर्णन देखिये...
देश मध्य मनोहर प्राम, नगर राज ग्रह उत्तम ठाम । गढ मन मन्दिर पोल पगार, चउटा हाट तरणु नहिं पार ॥१३॥
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धनवंत लोक दोसि तिहां घरणा, सज्जन लोफ तणी नहीं मणा । दुर्जन लोक न पीसि ठाम, चोर उपट नहीं तिहाँ ताम ॥१४।।
घरि घरि वाजित वाजि भंग, घिर घिर नारी धरि मनि रंग । घरि घरि उछव दोसि सार, एह सह पुण्य तरणु विस्तार ।।१५।।