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राजस्थान के जैन संत : व्यक्तित्व एवं कृतित्व
और ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य एवं शूद्र के नाम से सम्बोधित किया जाता है। बास्मा तो राणा है-वह शूद्ध कैसे हो सकती है।
उच्च नीच नवि अप्पा हुपि, कर्म कलंक तरणो की तु सोई। वंभरा क्षत्रिय वैश्य न शुद्र, बप्पा सजा नवि होय शुद्र ।। ७ ।। बामा प्रश में करने का भी लिखा है :---
अप्पा धनी नवि नवि निर्षम्न, नवि पुर्बल नवि अप्पा धन्न । मूर्ख हर्ष द्वेष नविने जीव, नवि सुखी नवि दुखी प्रतीव ।। ७१ ॥
सुक्ख अमंत बल वली, रे बमन्स पतुष्टय ठाम | इन्द्रिय रहित मनो रहित, शुभ चिदानन्द नाम ।। ७७ ।।
रपना काल :
कवि ने अपनी यह रचना कर समाप्त की पी-इसका उसने कोई उल्लेख नहीं किया है, लेकिन संभवतः ये रचनाएं उनके प्रारम्मिक जीवन की रचनाएं रही हों। इसलिए इन्हें सोलहवीं शताब्दी के अन्तिम चरण की रचना मामना ही उचित होगा । रचना समाप्त करते हुए कवि ने अपना परिचय निम्न प्रकार दिया है।
शान निज भाव शुद्ध चिदानन्द चीततो, मूको माया मेह गेह बेहए । सिद्ध तणां सुखणि मलहरहि, आस्मा मावि शुभ एहए । श्री विजय कीर्ति गुरु मनी बरी, घ्याउ शुद्ध चिद्रूप ।। भट्टारक श्री शुभचन्द्र भणि था तु शुद्ध सस्प ॥११॥ कृति का प्रथम पच निम्न प्रकार है -
समयसार रस सांभको, रेसम रवि श्री समिसार । समयसार सुन सिद्धमा सीमि सुक्स विचार ॥१॥ .
मूल्यांकन
भ. शुभचन्द्र की संस्कृत एवं हिन्दी रचनायें एवं भाषा, फाप्यतत्व एवं वर्णन शंखी सभी दृष्टियों से महत्वपूर्ण है। संस्कृत भाषा के हो ये अधिकारी आचार्य थे ही हिन्दी काव्य क्षेत्र में भी वे प्रतिभावान कवि थे। यद्यपि हिन्दी भाषा में उन्होंने कोई