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राजस्थान के जैन संत : व्यक्तित्व एवं कृतित्व
तोची संगति पर
भारी उत्तम श्राचार
दुर्लभ भव मानव तणो, जीव तूं आलिम हार ॥४०॥
५. सीमन्धर स्वामी गीत
यह एक लघु गीत है - जिसमें सीमन्धर स्वामी का स्तवन किया गया है ।
६. चित्तनिरोधक कथा
यह १५ छन्दों की एक लघु कृति है, जिसमें चित्त को वश में रखने का उपदेश दिया गया है । यह भी उदयपुर वाले गुटके में ही संग्रहीत है । अन्तिम पद्य निम्न प्रकार है-
सूरि श्री मल्लिभूषण जयो जयो श्री लक्ष्मीचन्द्र ।
तास वंश विद्यानि लाड़ नीति श्रृंगार ।
श्री वीरचन्द्र सूरी भरणी, चित्त निरोध विचार ||१५||
७. बाहुबलि वेलि
इसकी एक प्रति उदयपुर के खण्डेलवाल दि० जैन मन्दिर के शास्त्र भण्डार में संग्रहीत है। यह एक लघु रचना है लेकिन इसमें विभिन्न छन्दों का प्रयोग किया गया है । त्रोटक एवं राग सिंधु मुख्य छन्द हैं ।
८. नेमकुमार रास
यह नेमिनाथ की वैवाहिक घटना पर एक लघु कृति है। इसकी प्रति उदयपुर के अग्रवाल दि० जैन मन्दिर के शास्त्र भण्डार में सुरक्षित है। रास की रचना संवत् १६७३ में समाप्त हुई थी जैसा कि निम्न छन्दों से ज्ञात होता है
तेहनी भक्ति करी धरणी, मुनि वीरचन्द दीघी युधि । श्री नमिता गुरवव्या, पामवा सधली रिधि ॥१६॥
संवत सोलताहोत्तरि, श्रवण सुदि गुरुवार । दशमीको दिन पड़ो, रास रवो मनोहार ॥१७॥
इस प्रकार 'भ० वीरचन्द्र' की अब तक जो कृतियां उपलब्ध हुई है - वे इनके साहित्य- प्र म का परिचय प्राप्त करने के लिए पर्याप्त हैं। राजस्थान एवं गुजरात के शास्त्र - भण्डारों की पूर्ण खोज होने पर इनकी अभी और की रचनाएं प्रकाश में श्राने की आशा है।
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