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प्राचार्य चन्द्रकीत्ति
'भ० रत्नकीति' ने साहित्य-निर्माण का जो वातावरण बनाया था तथा अपने शिष्य-प्रशिष्यों को इस ओर कार्य करने के लिए प्रोत्साहित किया था, इसी के फल-स्वरूप ब्रह्मा-जयसागर, कुमुदचन्द्र, चन्द्रकीति, संयमसागर, गणेश और धर्मसागर जैसे प्रसिद्ध सन्त, साहित्य-रचना की प्रोर प्रवृत्त हुए । 'आ. चन्द्रकीति' "म० रत्नकीति' के प्रिय शिष्यों में से थे । ये मेधावी एवं योग्यतम शिष्य थे तथा अपने गुरु के प्रत्येक कार्यों में सहयोग देते थे।
__ 'चन्द्रकीति' के गुजरात एवं राजस्थान प्रदेश प्रमुख क्षेत्र थे। कमी-कमी ये अपने गुरु के साथ और कभी स्वतन्त्र रूप से इन प्रदेशों में बिहार करते थे। वैसे वारडोली, भड़ौच, नगरपुर, सागवाड़ा आदि नगर इनके साहित्य निर्माण के स्थान थे। अब तक इनकी निम्न कृतियां उपलब्ध हुई हैं :
१. सोलहकारण रास २. जयकुमाराख्यान, ३. चारित्र-चुनड़ी, ४. चौरासी लाख जीवजोनि वीनती। उक्त रचनायों के अतिरिक्त इनके कुछ हिन्दी पद भी उपलब्ध हुए हैं ।
१. सोलहकारण रास
यह कवि की लघु कृति है। इसमें षोडशकारण व्रत का महात्म्य बतलाया गया है। ४६ पद्या बाले इस रारा में राग-गोडी देशी, दहा, राग-देशास्त्र, त्रोटक, चाल, राग-धन्यासी आदि विभिन्न छन्दों का प्रयोग हुआ है। कवि ने रचनाकाल का उल्लेख तो नहीं किया है, किन्तु रचना-स्थान 'भडीच' का अवश्य निर्दिष्ट किया है। 'मड़ौच' नगर में जो शांतिनाथ का मन्दिर था- वही इस रचना का समाप्ति -स्थान था । रास के अन्त में कवि ने अपना एवं अपने पूर्व गुरुओं का स्मरण किया है। अन्तिम दो पद्य निम्न प्रकार हैं
श्री भक्ष्यच नगरे सोहामणु श्री शांतिनाथ जिनराय रे । प्रासादे रचना रचि, श्री चन्द्रकीरति गुण गायरे ॥४४॥