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राजस्थान के जैन संत-व्यक्तित्व एवं कृतित्व
गुणानुवाद गया है। इनके व्यक्तित्व एवं पांडित्य से सभी प्रभावित थे । भट्टारक शुभचन्द्र ने इनका..निम्न शब्दों में स्मरण किया है.। . ।
तत्पधारी भुवनादिकीतिः, जीयाच्चिरं धर्मधुरीणदक्षः ।
चन्द्रप्रभचरित्र शास्त्रार्थकारी खलु तस्य पट्टे भट्टारकभुवनाविकीतिः ।
पार्श्वकाव्यपंजिका
भट्टारक सकल भूपरा ने अपनी उपधेशरत्न माला में अापका निम्न पशब्दों में उल्लेख किया है।
भुवनकीतिगुरुस्तत जितो भुवनभासन शासनमानः । अजनि तीव्रतपश्चरणक्षमो, विविधधर्मसमृद्धिसुदेशकः ।।३।।
भट्टारक रत्मचंद्र ने भुवनफीति को सकलकीति की प्राम्नाय का सूर्य मानते हुये उन्हें महा तपस्वी एवं वनवासी शब्द से सम्बोधित किया है:
गुरुभुयन कीत्यत्यिस्तत्पट्टोदय भानुमान् ।
जातवान् जनितानन्दो वनवासी महातपः ॥४॥
इसी तरह भ ज्ञानकीत्ति ने अपने यशोधर चरित्र में इनका कठोर तपस्या के कारण उत्कृष्ट कीति वाले साधु के रूप में स्तवन किया है
पट्ट तदीये भुवनादिकोत्तिः
तपो त्रियागाप्तसुकीतिमूर्तिम्
भवनाहीत्ति पहिले मुनि रहे और भट्टारया सकलकीति की मृत्यु के पश्चात् किसी समय भट्टारक बने । भट्टारक बनने के पश्चात् इनके पांडित्य एवं तपस्या की चर्चा चारों ओर हल गयी। इन्होंने अपने जीवन का प्रधान लक्ष्य जनता को सांस्कृतिक एवं साहित्यिक दृष्टि से जाग्रत करने का बनाया और इसमें उन्हें पर्याप्त सफलता मिली । इन्होंने अपने शिष्यों को उत्कृष्ट विद्वान एवं साहित्य-सेवी के रूप में तैयार किया।
म० भुवनकीर्ति की अब तक जितनी रचनायें उपसम्घ हुई हैं उनमें जीवन्धररास, जम्बूस्वामीरारा, प्रजनाचरित्र आपकी उत्तम रचनामे हैं। साहित्य रचना के अतिरिता इन्होंने कितने ही स्थानों पर प्रतिष्ठा विधान सम्पन्न कराये तथा प्राचीन मन्दिरों का जीर्णोद्धार कराया।