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अवशिष्ट संत
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था। उसके दो वर्ष पश्चात् संवत १५८२ में घटियालीपुर में इन्हीं के प्राम्नाय के एक मुनि हेमकीति को श्रीचन्दकृत रत्नकरण्ड की प्रति मेंट की गयी । भेंट करने बाली थी बाई भोली। इसी वर्ष जब इनका चंपावती (चाटन) नगर में बिहार हुआ तो वहां के साह गोत्रीय धावकों द्वारा सम्यवत्व- कौमुदी की एक प्रति ब्रह्म बूचा (बूचराज) को भेंट दी गयी । ब्रह्म बुचराज्ञ भ प्रभाव के शिष्य थे और हिन्दी के प्रसिद्ध विद्वान् थे। संवत् १५८३ की अषाढ शुदला तृतीया के दिन इन्हीं के प्रमुख शिष्य मंडलाचार्य धर्मचन्द्र के उपदेश से महाकवि श्री यशःकीति विरचित 'चन्दपहचरित' को प्रतिलिपि वो गयी जो जयपुर के प्रामेर शास्त्र भण्डार में सग्रहीत हैं।
रांवत् १५८४ में महाकवि धनपाल कृत बाहुबन्नि चरित की बघेरवाल जाति में उत्पन्त.साह माघो द्वारा प्रतिलिपि करवायी गयी और प्रभाचन्द्र के शिष्य अ० रत्ननीति को स्वाध्याय के लिये भेट दी गयी। इस प्रकार भ० प्रभाचन्द्र ने राजस्थान में स्थान-स्थान में बिहार कर अनेक जीर्ण अन्यों का उद्धार किमा और उनकी प्रतियां करवा कर शास्त्र मण्डारों में संग्रहीत की । वास्तव में यह उनकी सच्ची साहित्य सेवा श्री जिसके कारण नंकड़ों ग्रन्थों की प्रतियां गुरक्षित रह सकी अन्यथा न जाने कब ही काल के गाल में समा जाती।
प्रतिष्ठा कार्य
भट्टारमा माचन्द्र ने प्रतिष्ठा पार्यों में भी पूरी दिलचस्पी ली । मट्टारक गादी पर बैठने के पश्चात् कितनी ही प्रतिष्ठानों वा नेतृत्व किया एवं जनता को मन्दिर निर्माण की ओर आकृष्ट किया। संवत् १५७१ की ज्येष्ठ शुबला २ को पोडा. कारमा यन्त्र एवं दशलक्षण यन्त्र की स्थापना की। इसके दो वर्ष पश्चात् संवत् १५७३ की फाल्गुन कृष्णा ३ को एक दशलक्षगा यन्त्र स्थापित किया । संवत् १५७८ की फाल्गुण सुदी ९ के दिन तीन मोयीसी की मूर्ति की प्रतिष्टा करायी और इसी तरह संवत् १५८३ में भी चौबीसी की प्रतिमा की प्रतिष्ठा इनके द्वारा ही सम्पन्न हु६ । राजस्थान के कितने ही मन्दिरों में इनके द्वारा प्रतिष्टित मुत्तियां मिलती है।
संयत् १५९३ में मंडलाचार्य धर्मचन्द्र ने आंदा नगर में होने वाले बड़े प्रतिष्ठा महोत्सव का नेतृत्व किया था उसमें शान्तिनाथ स्वामी की एक विशाल एवं मनोज मूत्ति की प्रतिष्ठा की गयी थी। चार फीट ऊँची एवं ३॥ फीट चौड़ी श्वेत पाषाण की इतनी मनोज्ञ मूत्ति इने गिने स्थानों में ही मिलती हैं । इसी समय के एक लेख में धर्मचन्द्र ने प्रभाचन्द्र का निम्न शब्दों में स्मरण किया है